Saturday, May 7, 2016

जाने कैसे खोयी माँ

मैं  अपनी  माँ  की  परछाही  मेरे  अंदर सोई  माँ  |
फिर  भी  कब  से  खोज रही  हूँ  जाने  कैसे खोयी  माँ  ||
जब बचपन में खेल खिलौने  बाबा  लेकर  आते  थे  .
तब  भी  सबसे  पहले  जाकर  सब  माँ  को  दिखलाते  थे
बढ़े  खर्च को  कम  करने  में  रात  रात ना  सोई  माँ
फिर  भी  कब से खोज  रही  हूँ जाने  कैसे  खोयी  माँ  .................
थोडा थोडा  बचपन  अपना  पहले  हममें  बाँट दिया  |
जब निकले बचपन की  हद से  कभी  कभी  बस  डांट दिया  ||
बचपन और जवानी बांटी ,बूढी होकर  सोयी  माँ
फिर भी कब से खोज रही हूँ ,जाने कैसे खोयी माँ  .....................
बड़ी सयानी रानी बेटी कहकर रोज मनाती थी |
कभी हरा के  ,कभी जिता के जग की  जंग  सिखाती थी ||
गुस्सा करके डांट लगा के .खुद छुप  छुप  के  रोयी माँ .
फिर भी कब से खोज रही हूँ जाने कैसे खोयी माँ ...........................
आज  तुम्हारी बेटी माँ ,अपनी बेटी की मम्मा है |
तुमसे लेकर उसको दे दूँ ,रिश्तों की जो शम्मा  है ||
आज नवासी बन मेरे आंचल  में  छुप के  सोयी  माँ
फिर भी कब से खोज रही हूँ जाने कैसे खोयी माँ ..........
||माँ ||

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