मामूली दबाव... उससे उपजा तनाव, और इस तनाव में निहित ऊर्जा के चलते भीषण तबाही ही... आसमान सी ऊंची खड़ी होनेवाली दीवार की वजह होते हैं।
सबसे ज्यादा नुकसान तनाव के चलते लगे झटके के विरुध, लचक नहीं होने से होता है। लचक बेहद जरूरी है... हर झटके से बच निकलने के लिए।
----
250 लाख साल पहले चीन और भारत की धरती अलग थी। दोनों ने साथ रहने का फैसला किया या संयोग बना कि दोनों साथ रहें, और दोनों एक दूसरे के करीब आ गई।
पर साथ रहने की अपनी कीमत होती है। धरती के ये दोनों टुकड़े, 1.5 से 2 इंच सालाना की दर से, एक दूसरे को दबा रहे हैं। दूसरे पर एकदम मामूली दबाव बना रहे हैं... बेहद मामूली।
इस ना दिखनेवाले बेहद मामूली दर से वे एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। दबाव की दर, बेहद मामूली है, एक साल में बस दो इंच, पर ये सचमुच में बेहद मामूली है क्या?
नतीजा सामने तो है... अपूर्णीय क्षति,
एक दूसरे को दबाने की कोशिश के इस दाब ने ही, इन दोनों के बीच, हिमालय जैसी ऊंची दीवार खड़ी कर दी है।
हमारे सारे जाती रिश्ते,, व्यक्तिगत और सामाजिक, सारे संबंध हमारे, ऐसे ही होते हैं। हम सब, एक दूसरे को अनदेखे दबाव से दबाते रहते हैं। वो दाब बेहद मामूली ही लगता है। लगता है कि इससे क्या होगा।
पर... दबाव मामूली ही क्यों ना हो, असर डालता है। हर दाब, एक बड़े तनाव की रचना करता है। उससे फर्क पड़ता है। दबाव से पैदा हुआ तनाव, जब अनियंत्रित होता है... तो भूकंप आता है। वो केवल जमीन में नहीं, व्यक्तिगत जीवन में भी आता है। तबाही... रिश्तों और व्यक्तियों के बीच भी मचती है। ये टूटन, व्यक्तियों के बीच भी हिमालय सी अलघ्य (जिसे पार ना किया जा सके) दीवार खड़ी कर देती है।
तो एक दूसरे को ‘मामूली समझे जानेवाले' दाब से दबाने से पहले, उससे पैदा होने वाले बेहिसाब तनाव और उसके नतीजे से हुए भूकंप के बारे में जरूर सोचिए, उससे होनेवाली तबाही के बारे में जरूर विचार करिए। व्यक्ति और रिश्तों के बीच खड़ी हो जानेवाली हिमालय जैसी दीवार का ख्याल जरूर कीजिएगा।
आपका मामूली दबाव... भीषण तबाही, आसमान सी ऊंची एक दीवार की वजह होता है।
------------
संसार, ब्रह्मांड में नियमों की कोई विविधता नहीं है। दिमाग वाले इंसानी रिश्ते, और मृत पत्थरों के बीच भी काम करनेवाले कायदे, एक ही होते हैं। उनका प्रभाव और नतीजा सब एक जैसा ही होता है।
तो भूकंप जमीन पर आए... या जीवन में... वजह मामूली समझा जानेवाले दबाव ही होता है। जमीन के दबाव को नियंत्रित नहीं कर सकते, आप जमीन के भूकंप को रोक नहीं सकते। वहां तो भूकंप आयेगा ही आएगा। हां, उस भूकंप से बचने की कोशिश जरूर करते है।
लेकिन अपने साथ के व्यक्ति पर जो दाब हम डालते हैं, ये इंसानी दबाव तो उपजता ही हमारे भीतर से है। तो इससे आए भूकंप से बचने से बहुत पहले तो हम इस भूकंप के होने ही नहीं देने में समर्थ हैं। तो रोक लीजिए, ऐसे हर भूकप को। अपनों पर... अपना दाब कम कीजिए।
उन्हें आजाद कीजिए, स्वतंत्र रहने दीजिए... उनपर हावी मत होईए... मत दबाईए उन्हें अपनी ऊर्जा से, अपनी विशाल भव्यता से।
वर्ना रिश्तों के बीच हिमालय सी दीवार खड़ी हो जाएगी... और हिमालय यूं ही खड़ा नहीं होता, वो लगातार विनाशकारी भूकंप के साथ खड़ा होता है। ये भूकंप तबतक आते हैं, जबतक सबकुछ खत्म ना हो जाएगा।
सबसे ज्यादा नुकसान तनाव के चलते लगे झटके के विरुध, लचक नहीं होने से होता है। लचक बेहद जरूरी है... हर झटके से बच निकलने के लिए।
----
250 लाख साल पहले चीन और भारत की धरती अलग थी। दोनों ने साथ रहने का फैसला किया या संयोग बना कि दोनों साथ रहें, और दोनों एक दूसरे के करीब आ गई।
पर साथ रहने की अपनी कीमत होती है। धरती के ये दोनों टुकड़े, 1.5 से 2 इंच सालाना की दर से, एक दूसरे को दबा रहे हैं। दूसरे पर एकदम मामूली दबाव बना रहे हैं... बेहद मामूली।
इस ना दिखनेवाले बेहद मामूली दर से वे एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। दबाव की दर, बेहद मामूली है, एक साल में बस दो इंच, पर ये सचमुच में बेहद मामूली है क्या?
नतीजा सामने तो है... अपूर्णीय क्षति,
एक दूसरे को दबाने की कोशिश के इस दाब ने ही, इन दोनों के बीच, हिमालय जैसी ऊंची दीवार खड़ी कर दी है।
हमारे सारे जाती रिश्ते,, व्यक्तिगत और सामाजिक, सारे संबंध हमारे, ऐसे ही होते हैं। हम सब, एक दूसरे को अनदेखे दबाव से दबाते रहते हैं। वो दाब बेहद मामूली ही लगता है। लगता है कि इससे क्या होगा।
पर... दबाव मामूली ही क्यों ना हो, असर डालता है। हर दाब, एक बड़े तनाव की रचना करता है। उससे फर्क पड़ता है। दबाव से पैदा हुआ तनाव, जब अनियंत्रित होता है... तो भूकंप आता है। वो केवल जमीन में नहीं, व्यक्तिगत जीवन में भी आता है। तबाही... रिश्तों और व्यक्तियों के बीच भी मचती है। ये टूटन, व्यक्तियों के बीच भी हिमालय सी अलघ्य (जिसे पार ना किया जा सके) दीवार खड़ी कर देती है।
तो एक दूसरे को ‘मामूली समझे जानेवाले' दाब से दबाने से पहले, उससे पैदा होने वाले बेहिसाब तनाव और उसके नतीजे से हुए भूकंप के बारे में जरूर सोचिए, उससे होनेवाली तबाही के बारे में जरूर विचार करिए। व्यक्ति और रिश्तों के बीच खड़ी हो जानेवाली हिमालय जैसी दीवार का ख्याल जरूर कीजिएगा।
आपका मामूली दबाव... भीषण तबाही, आसमान सी ऊंची एक दीवार की वजह होता है।
------------
संसार, ब्रह्मांड में नियमों की कोई विविधता नहीं है। दिमाग वाले इंसानी रिश्ते, और मृत पत्थरों के बीच भी काम करनेवाले कायदे, एक ही होते हैं। उनका प्रभाव और नतीजा सब एक जैसा ही होता है।
तो भूकंप जमीन पर आए... या जीवन में... वजह मामूली समझा जानेवाले दबाव ही होता है। जमीन के दबाव को नियंत्रित नहीं कर सकते, आप जमीन के भूकंप को रोक नहीं सकते। वहां तो भूकंप आयेगा ही आएगा। हां, उस भूकंप से बचने की कोशिश जरूर करते है।
लेकिन अपने साथ के व्यक्ति पर जो दाब हम डालते हैं, ये इंसानी दबाव तो उपजता ही हमारे भीतर से है। तो इससे आए भूकंप से बचने से बहुत पहले तो हम इस भूकंप के होने ही नहीं देने में समर्थ हैं। तो रोक लीजिए, ऐसे हर भूकप को। अपनों पर... अपना दाब कम कीजिए।
उन्हें आजाद कीजिए, स्वतंत्र रहने दीजिए... उनपर हावी मत होईए... मत दबाईए उन्हें अपनी ऊर्जा से, अपनी विशाल भव्यता से।
वर्ना रिश्तों के बीच हिमालय सी दीवार खड़ी हो जाएगी... और हिमालय यूं ही खड़ा नहीं होता, वो लगातार विनाशकारी भूकंप के साथ खड़ा होता है। ये भूकंप तबतक आते हैं, जबतक सबकुछ खत्म ना हो जाएगा।
No comments:
Post a Comment