Sunday, May 22, 2016

आओ समझें रामायण को -भाग -2

करम प्रधान विश्व रचि राखा | जो जस करहीं सो तस फल चाखा |
कैसी मनोरम छटा थी तब सरयू के तट पर ,आज भी अयोध्या में चंहु ओर उत्सव का वातावरण है | राजा दशरथ अपने सारे दायित्वों से मुक्त होना चाहते हैं इसीलिए राम को राज्य देकर स्वयं वन जाना चाहते हैं कुछ दिन गुरुजनों के आश्रम में रहकर अपने परलोक गमन की तैयारी को समय देना चाहते हैं | लेकिन ..............
करम प्रधान विश्व रचि राखा | जो जस करहीं सो तस फल चाखा ||
ये आधी चौपाई सम्पूर्ण जगत का आधार है | सबका प्रारब्ध उसके अपने कर्मों से निर्धारित होता है | अर्थात हम अपने भाग्य निर्माता स्वयं ही होते हैं | इस सत्य से सब परिचित हैं लेकिन दुःख का दोषारोपण किसी दूसरे पर करना भी हमारा पुराना स्वभाव है | सो आज जब श्रवण के माता पिता के शब्द बाण कैकेयी की वाणी  को  माध्यम बनाकर राजा दशरथ के हृदय को भेद रहे हैं तो राजा भूल गये कि ये बाण कभी उन्हीं के तरकस से निकले थे | वो बाण भी शब्द भेदी थे ,ये भी शब्दभेदी हैं | तब श्रवण का हृदय था आज महाराज दशरथ का हृदय है | तब धनुष राजा की जिव्हा थी आज  कैकेयी की जिव्हा धनुष बनी है | बड़ा कष्ट होता है जब शब्दभेदी बाण हृदय को छलनी करते हैं और अक्सर प्राण लेकर ही जाते हैं .......
सारे राज्य में शोर मचा है राम वन जा रहे हैं !कोई पूछता है क्यों और सब कैकेयी का नाम ले लेकर दोष मढ़ रहे हैं अथवा तो राजा के प्रारब्ध में भागीदार बन राजा का कर्ज चुका रहे हैं ..और अंत समय आते आते राजा को भी प्रायश्चित करने का अवसर मिल ही गया | ........
शेष क्रमशः 

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