Monday, May 16, 2016

आओ समझें रामायण को .....

आज  श्रवणकुमार की व्यथा ..

सरयू का तट है .चारों ओर सुंदर हरियाली फैली है .मंद पवन बह रही है .दोनों ओर हरे भरे वृक्ष और बीच में धीरे धीरे बहती हुई सरयू .मानों स्वर और ताल मिलकर वन देवी की आराधना कर रहे हों ...
एक पथिक जो बड़े दिनों से यात्रा में है .आज इधर आ निकला है | वो कोई साधारण यात्री  नहीं है बल्कि एक कर्मठ योगी है जिसने अपनी कर्म साधना में कभी संसाधनों के होने अथवा न होने को कारण नहीं बनने दिया |
उसके कंधे पर एक बहंगी (कावड़ )है जिसमें कोई गंगाजल नहीं है .उसकी यात्रा भी काशी विश्वनाथ के लिए नहीं है और उसे कोई जल्दी नहीं है अपनी मंजिल पर पहुँचने की | क्योंकि स्वयं काशीविश्वनाथ उसकी कावड़ में उसके माता पिता के रूप में उसके साथ यात्रा कर रहे हैं | उन्हीं की इच्छा है तीर्थो में जाकर स्वयं अपना दर्शन करने की ,सो श्रवणकुमार भी निकल पड़े हैं जन्मपिता को जगत्पिता मानकर आज्ञा पालन करने .......
और आज विधाता की प्रेरणा से आ निकले हैं सरयू के इस मनोरम तट पर ,जो अयोध्या की सीमाओं में आता है
और इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा दशरथ इसकी रक्षा करते हैं .राजा दशरथ धर्म धुरन्दर हैं स्वयं को अयोध्या का सेवक मानते हैं लेकिन कभी कभी सेवक को भी स्वामी होने का दुर्गुण घेर लेता है ..विनाश काले विपरीत बुद्धि .
राजा दशरथ शब्द भेदी बाण चलाने में निपुण हैं और आज  फिर उन्होंने शब्द भेदी बाण का संधान किया और सरयू की दिशा में लक्ष्य करके छोड़ दिया |
बाण सदा बांस के धनुष पर संधान करके चले ऐसा कोई नियम नहीं है और शब्द भेदी बाण के बारे में तो बिलकुल भी नहीं है | शब्द भेदी बाण बहुधा मन के तरकस से निकाल कर वाणी के धनुष पर शब्दों की प्रत्यंचा को आधार बनाकर चलाये जाते हैं और सीधे हृदय को भेद देते हैं ..
आज बिना अनुमति जल भरने का अपराध श्रवन कुमार कर बैठे हैं .श्रवणकुमार मुनि कुमार हैं ,तपस्वी हैं.
लेकिन राजा को जाने उनका कौन सा आचरण आहत कर गया कि अपने शब्द भेदी बाणों से श्रवण कुमार का हृदय विदीर्ण कर डाला | और वाणी से किया गया प्रहार बड़ा घातक होता है | श्रवणकुमार ने शरीर छोड़ दिया .और राजा दशरथ पश्चात्ताप में डूबे अपने अपराध को अनजाने में हुआ अपराध मान रहें हैं | श्रवण  के माता पिता अथवा तो स्वयं काशी विश्वनाथ एक कलश भर सरयू के जल की प्रतीक्षा कर रहे हैं जो भक्त का संकल्प था भगवान के लिए | राजा दशरथ से विघ्न हुआ ,भक्त के संकल्प में ,तपस्वी की तपस्या में .और आश्रित के आश्रय में ,सो क्रोध ने प्रत्यंचा चढ़ा ली है और कई बाण छोड़ दिए हैं राजा दशरथ को लक्ष्य करके .जिनके परिणाम तुरंत दंड न देकर भय और आशंका की धीमी मौत देंगे | .......
हम अपने पापों की छाया में अकेले चलते हैं किसी को शामिल नहीं करना चाहते और स्वयं ही तर्क वितर्क करके
स्वयं को निर्दोष मान लेते हैं विशेष कर जब परमात्मा अनुकूल हो तो लगता है पाप गये अब न लौटेंगे | राजा दशरथ भी भूल गये हैं .हाँ उस घटना के बाद शब्द भेदी बाण चलाना छोड़ दिया है |
शेष क्रमशः

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