कितने वर्षों से मन बार बार कहता था ,कभी अवसर मिले तो हम भी जाएँ अमरनाथ दर्शन को | सुना है बर्फ से ढके ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों के बीच किसी ठंडी गुफा में भगवान शिव विराजते हैं | वहां सब कुछ हिम अर्थात बर्फ है .इतनी असीम शांति की स्वयं अमरनाथ हिम स्वरूप हो गये | श्री राम चरित मानस में बाबा तुलसी ने बड़ा रहस्यमयी वर्णन किया है इस गुफा का | अमरनाथ की यात्रा के कुछ पड़ाव बताये गये हैं और हर पड़ाव की एक अलग कथा है जैसे अनंत नाग में अपने शरीर के सभी छोटे छोटे सर्पों को त्याग दिया | पिस्सूटॉप में पिस्सुओं को छोड़ा चन्दन बाड़ी में मस्तक से चन्दन और शेषनाग में अपने गले के हार बने शेषनाग को भी त्याग दिया
और जब महादेव ने इस गुफा में प्रवेश किया तब उनके साथ केवल महादेवी उमा थी | क्योंकि उमा को अमरनाथ की कथा सुननी थी | अमरनाथ अर्थात अमरता के स्वामी स्वयं भगवान वासुदेव .जिनका नाम गुण संकीर्तन ही ही उनका आवाह्न होता है जब कोई उनकी चर्चा ( मनसा ,वाचा ,कर्मणा किसी भी रूप में )करता है तब वो वहीं साकार होने लगते हैं | हम इस बार भी अमरनाथ की यादों में खोये हुए थे कि जैसे अचानक हमारे हृदय पटल पर स्वयं अमरनाथ साकार होकर हमें अमरनाथ की कथा सुनाने लगे .
अमरनाथ की यात्रा के लिए पहले पात्र बनना होता है | जैसे महादेव शिव .ऐसे ही कोई शिव नहीं बनता शिव बनने के लिए संसार के हिस्से का सारा विष पीना पड़ता है .विष पीना भी सबके बस का काम नहीं उसे कंठ में रोकना पड़ता है .कंठ इतना सक्षम हो जो विष को रोक ले उसके लिए अनंत कोटि वर्षों तक तप करना पड़ता है .
मौन की साधना करनी होती है | और वही शिव जब अमरनाथ की यात्रा करना (कथा कहना ) चाहते हैं तो अपने शिव होने का भी त्याग करना पड़ता है उन्हें | .....
अमरनाथ की यात्रा वस्तुतः त्याग की यात्रा है | त्याग हर उस उपाधि का जो हमें हम होने का आभास कराती हो |अपनी पहचान ,अपना देहाभिमान ,अपना क्रोध ,अपने गुण अवगुण .यहाँ तक कि अपने शास्त्रज्ञान रूपी शेषनाग को भी किसी गहरी ठंडी झील में उतार देना होता है | और फिर सब त्याग कर हल्के होकर मष्तिष्क की असीम शांति के साथ यात्रा आरम्भ करें उस हिम प्रदेश की जहाँ साधना की ऊचाईयों की तरफ बढ़ते हुए हर कदम के साथ आप हिमालय के निकट से निकटतम होते जायेंगे | भगवान शिव हिमालय में विराजते हैं .....
हिमालय "हिम का मन्दिर "अर्थात शांति का ऐसा चरम शिखर जहाँ दैहिक ,दैविक भौतिक तीनों तापों का कोई प्रभाव न हो .......
और तब से हम हर पल अमरनाथ की यात्रा में हैं |
श्री हरि
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और जब महादेव ने इस गुफा में प्रवेश किया तब उनके साथ केवल महादेवी उमा थी | क्योंकि उमा को अमरनाथ की कथा सुननी थी | अमरनाथ अर्थात अमरता के स्वामी स्वयं भगवान वासुदेव .जिनका नाम गुण संकीर्तन ही ही उनका आवाह्न होता है जब कोई उनकी चर्चा ( मनसा ,वाचा ,कर्मणा किसी भी रूप में )करता है तब वो वहीं साकार होने लगते हैं | हम इस बार भी अमरनाथ की यादों में खोये हुए थे कि जैसे अचानक हमारे हृदय पटल पर स्वयं अमरनाथ साकार होकर हमें अमरनाथ की कथा सुनाने लगे .
अमरनाथ की यात्रा के लिए पहले पात्र बनना होता है | जैसे महादेव शिव .ऐसे ही कोई शिव नहीं बनता शिव बनने के लिए संसार के हिस्से का सारा विष पीना पड़ता है .विष पीना भी सबके बस का काम नहीं उसे कंठ में रोकना पड़ता है .कंठ इतना सक्षम हो जो विष को रोक ले उसके लिए अनंत कोटि वर्षों तक तप करना पड़ता है .
मौन की साधना करनी होती है | और वही शिव जब अमरनाथ की यात्रा करना (कथा कहना ) चाहते हैं तो अपने शिव होने का भी त्याग करना पड़ता है उन्हें | .....
अमरनाथ की यात्रा वस्तुतः त्याग की यात्रा है | त्याग हर उस उपाधि का जो हमें हम होने का आभास कराती हो |अपनी पहचान ,अपना देहाभिमान ,अपना क्रोध ,अपने गुण अवगुण .यहाँ तक कि अपने शास्त्रज्ञान रूपी शेषनाग को भी किसी गहरी ठंडी झील में उतार देना होता है | और फिर सब त्याग कर हल्के होकर मष्तिष्क की असीम शांति के साथ यात्रा आरम्भ करें उस हिम प्रदेश की जहाँ साधना की ऊचाईयों की तरफ बढ़ते हुए हर कदम के साथ आप हिमालय के निकट से निकटतम होते जायेंगे | भगवान शिव हिमालय में विराजते हैं .....
हिमालय "हिम का मन्दिर "अर्थात शांति का ऐसा चरम शिखर जहाँ दैहिक ,दैविक भौतिक तीनों तापों का कोई प्रभाव न हो .......
और तब से हम हर पल अमरनाथ की यात्रा में हैं |
श्री हरि
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