आज एक मित्र ने पूछा है आप ईश्वर से कैसे मिली ?
कुछ मार्ग हमें भी बताओ !
लाखों लोग प्रतिदिन वृन्दावन आते हैं पर उन्हें पता है कि कौन उनके लिये ही आया है !
ऐसे भागकर आलिंगन-बद्ध करते हैं मानो फ़िर कोई सुदामा आ गया हो !
हम उनसे कैसे मिले नहीं जानते !!
कुछ मार्ग हमें भी बताओ !
लाखों लोग प्रतिदिन वृन्दावन आते हैं पर उन्हें पता है कि कौन उनके लिये ही आया है !
ऐसे भागकर आलिंगन-बद्ध करते हैं मानो फ़िर कोई सुदामा आ गया हो !
हम उनसे कैसे मिले नहीं जानते !!
कैसे बताएं कि हम गलती से अथवा तो उसकी इच्छा से खींच लिए गये हैं अध्यात्म पथ पर !
हमारा कभी कोई इरादा न था धार्मिक हो जाने का !
हमने कभी नहीं कहा कि प्रभु हमें अपनी शरण में ले लो !
आरम्भ बता सकते हैं जब हमारी सास ने हमें श्री रामचरित मानस पढने को दी ! और हमने ये कहकर छोड़ दी कि सारे धर्मों का ठेका स्त्रियों ने ही ले रखा है !
हम बड़े वाले नास्तिक थे !
और हठी भी !
लेकिन वो परमात्मा हमसे भी बड़ा हठी था !
बरगद सा विशाल हमारा अहंकार और आसमान सी विशाल उसकी दया दृष्टि !
उसने योजना बद्ध तरीके से हमारे अहंकार को काटना .छांटना शुरू किया !
पहले ससुराल की भट्टी में डाला ! निकलना चाहते थे ! झटपटाते थे लेकिन मायके वालों से भी धीरे धीरे एक एक कर सम्बन्ध खत्म हो गये !
ससुराल वालों ने अपनाया नहीं और मायके वाले छोड़ चुके थे ! लेकिन हम इतने जिद्दी थे कि आकाश की ओर
हाथ उठा कर परमात्मा को चैलेंज कर रहे थे !
हमें सबने छोड़ दिया लेकिन हम भाग्यवादी नहीं हुए और दिन रात मेहनत करते हुए आगे बढ़ रहे थे !
पति बीमार थे आर्थिक स्थिति कमजोर थी लेकिन हमारा हौंसला कम होने का नाम ही नहीं लेता था !
हमने एक बार भी परमात्मा को नहीं पुकारा !लेकिन वो हमें छोड़ने को तैयार न था !
कई बार डूबे ! फिर उबरे !
पैसा कमाते और कहीं न कहीं घाटा हो जाता !
ऐसे ही जीवन गुजर रहा था ! कि एक दिन पता चला बेटे को कोई गंभीर रोग होने की कोशिश में था ! हम डाक्टर के यहाँ गये !
डाक्टर ने एम् .आर .आई .के बाद बताया ! इसके पापा वाली समस्या हो सकती है
तुरंत ट्रीटमेंट कराएँ !
उस दिन हमने फिर हाथ उठाकर ईश्वर को चुनौती दे डाली ! देखती हूँ तू कहाँ तक रास्ता रोकेगा !
उस वक्त वैभव लक्ष्मी के व्रतों का बड़ा ही चलन था ! हमने भी चार व्रत रखे थे !
उन्हें वहीं छोड़ दिए ! और कह दिया दोनों बाप बेटे ठीक होंगे तो व्रत पूरे कर देंगे !कई बार डूबे ! फिर उबरे !
पैसा कमाते और कहीं न कहीं घाटा हो जाता !
ऐसे ही जीवन गुजर रहा था ! कि एक दिन पता चला बेटे को कोई गंभीर रोग होने की कोशिश में था ! हम डाक्टर के यहाँ गये !
डाक्टर ने एम् .आर .आई .के बाद बताया ! इसके पापा वाली समस्या हो सकती है
तुरंत ट्रीटमेंट कराएँ !
उस दिन हमने फिर हाथ उठाकर ईश्वर को चुनौती दे डाली ! देखती हूँ तू कहाँ तक रास्ता रोकेगा !
उस वक्त वैभव लक्ष्मी के व्रतों का बड़ा ही चलन था ! हमने भी चार व्रत रखे थे !
उन्हें वहीं छोड़ दिए ! और कह दिया दोनों बाप बेटे ठीक होंगे तो व्रत पूरे कर देंगे !
और वो तो जैसे इंतजार में ही खड़ा था !
दोनों ठीक हो गये सिर्फ छ महीने के कोर्स से !
फिर हमने व्रत किये !
महालक्ष्मी के जप किये
फिर हम बीमार पड़े ! हमारे सब जमा हुए रूपये इलाज में चले गये !
नौकरी छूट गयी !
कर्ज भी था !
लेकिन एक दिन ऐसा चमत्कार हुआ कि हम फिर उस करुणानिधि को अनदेखा न कर सके !
हमने डेरा सच्चा सौदा से नाम दान लिया था !
लेकिन कभी दर्शन को न गये थे !
तो एक दिन हमारे पूज्य गुरुवर ब्रह्मलीन शाह सतनाम जी
हमें दर्शन दे गये .सपने में ! हमने उन्हें कोई साधारण बुजुर्ग समझा !
लेकिन जब दो चार महीने बाद किसी के घर उनकी फोटो देखि तो पता चला कि वो तो सिरसा वाले गुरु जी हैं !
तब हमने जाना कि परमात्मा किस तरह अपने निज जनों के लिए कष्ट उठाते हुए पीछे -पीछे घूमता है !
ये यात्रा का आरंभ था !
जिसे न शुरू करने में हमारा कोई हाथ था न आगे बढने में कोई हाथ !
हम बाढ़ के साथ बहते हुए तिनके गंगोत्री से रामेश्वरम की यात्रा पर निकल गये !
बहे जा रहे हैंअब शब्द नहीं है उस कृपा को समझाने के लिए !
आगे जो है उसे कहना मुश्किल है
कह भी दिया तो आप तक न पहुंचेगा .
ये समझिये कि हम दोनों हठी थे .
वो हमे ऊपर आने को कहता था .हम उसे नीचे आकर बात करने को कहते थे ! बस कुछ वो चले कुछ हम और आज हम बहन भाई हैं !
उसने सुदामा को वैभव देकर द्वारिकाधीश का मित्र कहने का अवसर दिया है और द्रौपदी को वनवासी बनाकर अपनी सखी होने का गौरव दिया है !
इस सारी कहानी में एक ही बात श्रेष्ठ थी कि हम उस अस्तित्व को नकार नहीं रहे थे ! वो है ये दृढ विश्वास था !
विश्वास था तभी तो झगड़ा था ! हवा से कौन झगड़ता है !
हम दोनों का रिश्ता हम दोनों पहचान रहे थे !
उनकी कृपा तो उनकी कृपा है उनकी कृपा की बात न पूछो !!
जय जय श्री राधे गोविन्द !
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