सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे
भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।। - (सभी सुखी होवें, सभी
रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का
भागी न बनना पड़े।).
बड़ी ही मंगलकामना है !जिसने भी ये प्रार्थना की होगी वो बड़ा ही सुखी व्यक्ति रहा होगा !
ध्यान रहे मंगल कामनाएं हमेशा तृप्त हृदय से ही निकलती हैं ! दग्ध हृदयों से अहा अथवा तो प्यास निकलती है ! जिसके पास जो होगा वही दे सकेगा ! जिन्हें संसार के पदार्थों की कामना शेष रहती है वो गरीबों के झोपड़ों में जाते हैं लाव लश्कर के साथ ! और थोड़े अन्न -धन आदि के साथ अपनी अतृप्त कामनाएं भी अन्यों में फैला देते हैं ! फिर वही कामनाएं आपके दिए अन्न से पोषित होकर फलती फूलती हैं और और पाने की लालसा लिए इस हृदय से उस हृदय की यात्रा करती हैं ! ये अतृप्त कामनाएं जहाँ -जहाँ जाती हैं वहां वहां अपनी तरंगें प्रवाहित करती हुई नई नई कामनाओं का जाल बुनती हैं और परिणाम में दुःख छोड़ जाती हैं ! फिर कोई दूसरा दग्ध हृदय आशीर्वाद की कामना लिए उस #दुःखसागर के तट पर आ पहुंचता है ! ये प्रक्रिया अनवरत चल रही है ! सब दुखी हैं ,सब सुख ढूंढ रहे हैं ! और परिणाम में दुःख पा रहे हैं ! हर ओर अफरा -तफरी का माहौल है !
जहाँ एक व्यक्ति गया उसी के पीछे भीड़ इकट्ठी होकर दौड़ पड़ी है ! इसे मिला तो मुझे भी अवश्य ही मिलेगा !
ये संसार दुःख का बगीचा है ! जिसमें कामनाओं के बीज बोये जाते हैं तृष्णा से सींचे जाते हैं अतृप्ति की खाद डाल-डाल कर भिन्न -भिन्न आकार, रूप -रंग के दुःख फूलों की शक्ल में खिल रहे हैं !
यही चक्र निरंतर चल रहा है ! !!
इसलिए रुकने से पहले ,मांगने से पहले यहाँ तक कि झोली उठाने से पहले विचार करो ! सोचो हम क्या चाहते है!यदि सुख की तलाश है तो कोई सुखी व्यक्ति ढूंडो !
सुखी व्यक्ति मानसरोवर सा होता है ! जितने डूबोगे उतने ही तृप्त होते जाओगे ! क्योंकि वो अपने आप में परिपूर्ण है ! वहां तुम्हारी अतृप्ति के लिए कोई ठौर नहीं ! आप अतृप्ति दो वो मिलते ही तृप्ति में बदल जाएगी ! आप अग्नि ले जाओ वो राख हो जाएगी ! आप अंजुरी भर पी लो ! आँख से ,कान से .आपके दग्ध हृदय की ज्वाला सुख में बदल जाएगी ! फिर आपभी उस मानसरोवर का ही एक भाग होंगे ! फिर वही काम आप भी कर सकेंगे जो उसने किया ! और इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ती चली जाये तो फिर इस बगीचे के फूलों का स्वभाव बदलने लगेगा !
सर्वे भवन्तु सुखिनः !!
बड़ी ही मंगलकामना है !जिसने भी ये प्रार्थना की होगी वो बड़ा ही सुखी व्यक्ति रहा होगा !
ध्यान रहे मंगल कामनाएं हमेशा तृप्त हृदय से ही निकलती हैं ! दग्ध हृदयों से अहा अथवा तो प्यास निकलती है ! जिसके पास जो होगा वही दे सकेगा ! जिन्हें संसार के पदार्थों की कामना शेष रहती है वो गरीबों के झोपड़ों में जाते हैं लाव लश्कर के साथ ! और थोड़े अन्न -धन आदि के साथ अपनी अतृप्त कामनाएं भी अन्यों में फैला देते हैं ! फिर वही कामनाएं आपके दिए अन्न से पोषित होकर फलती फूलती हैं और और पाने की लालसा लिए इस हृदय से उस हृदय की यात्रा करती हैं ! ये अतृप्त कामनाएं जहाँ -जहाँ जाती हैं वहां वहां अपनी तरंगें प्रवाहित करती हुई नई नई कामनाओं का जाल बुनती हैं और परिणाम में दुःख छोड़ जाती हैं ! फिर कोई दूसरा दग्ध हृदय आशीर्वाद की कामना लिए उस #दुःखसागर के तट पर आ पहुंचता है ! ये प्रक्रिया अनवरत चल रही है ! सब दुखी हैं ,सब सुख ढूंढ रहे हैं ! और परिणाम में दुःख पा रहे हैं ! हर ओर अफरा -तफरी का माहौल है !
जहाँ एक व्यक्ति गया उसी के पीछे भीड़ इकट्ठी होकर दौड़ पड़ी है ! इसे मिला तो मुझे भी अवश्य ही मिलेगा !
ये संसार दुःख का बगीचा है ! जिसमें कामनाओं के बीज बोये जाते हैं तृष्णा से सींचे जाते हैं अतृप्ति की खाद डाल-डाल कर भिन्न -भिन्न आकार, रूप -रंग के दुःख फूलों की शक्ल में खिल रहे हैं !
यही चक्र निरंतर चल रहा है ! !!
इसलिए रुकने से पहले ,मांगने से पहले यहाँ तक कि झोली उठाने से पहले विचार करो ! सोचो हम क्या चाहते है!यदि सुख की तलाश है तो कोई सुखी व्यक्ति ढूंडो !
सुखी व्यक्ति मानसरोवर सा होता है ! जितने डूबोगे उतने ही तृप्त होते जाओगे ! क्योंकि वो अपने आप में परिपूर्ण है ! वहां तुम्हारी अतृप्ति के लिए कोई ठौर नहीं ! आप अतृप्ति दो वो मिलते ही तृप्ति में बदल जाएगी ! आप अग्नि ले जाओ वो राख हो जाएगी ! आप अंजुरी भर पी लो ! आँख से ,कान से .आपके दग्ध हृदय की ज्वाला सुख में बदल जाएगी ! फिर आपभी उस मानसरोवर का ही एक भाग होंगे ! फिर वही काम आप भी कर सकेंगे जो उसने किया ! और इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ती चली जाये तो फिर इस बगीचे के फूलों का स्वभाव बदलने लगेगा !
सर्वे भवन्तु सुखिनः !!