Friday, March 31, 2017

एक बहुत बड़ा जुआरी हुआ। बहुत समझाया पत्नी ने, परिवार ने, मित्रों ने; लेकिन उसने सुना नहीं, धीरे धीरे सब खो गया। एक दिन ऐसी हालत आ गयी कि सिर्फ एक रुपया घर में बचा। पली ने कहा, ‘अब तो चौंको। अब तो सम्हलो।’ पति ने कहा, ‘जब इतना सब चला गया है और एक रुपया ही बचा है तो आखिरी मौका मुझे और दे। कौन जाने, एक रुपये से भाग्य खुल जाए।’ जुआरी सदा ऐसा ही सोचता है। और फिर उसने कहा कि जब लाखों चले गये, अब एक ही बचा तो अब एक के लिए क्या रोना धोना। और एक रुपया चला ही जायेगा, कोई बचनेवाला नहीं है। लगा लेने दे दाव पर उसे भी।
पत्नी ने भी सोचा कि अब जब सब ही चला गया, एक ही बचा है और एक कोई टिकनेवाला वैसे भी क्या है; सांझ के पहले खत्म हो जायेगा। तो ठीक है, तू अपनी आखिरी इच्छा भी पूरी कर।
जुआरी गया जुए के अड्डे पर। बड़ा चकित हुआ। हर बाजी जीतने लगा। एक के हजार हुये, हजार के दस हजार हुये, दस हजार के पचास हजार हुये, पचास हजार के लाख हो गये; क्योंकि वह इकट्ठे ही दांव पर लगाता गया। फिर उसने लाख भी लगा दिये और कहा कि बस, अब आखिरी हल हो गया सब। और वह सब हार गया। वह घर लौटा। पली ने पूछा, ‘क्या हुआ?’ उसने कहा कि एक रुपया भी चल गया।
क्योंकि तुम वही खो सकते हो, जो तुम लेकर आये थे। लाख की क्या बात करनी! उसने कहा, ‘एक रुपया खो गया, कोई चिंता की बात नहीं। वह दांव खराब गया।’ पर उसने यह बात न कही कि लाख हो गये थे। ठीक ही किया; क्योंकि, जो तुम्हारे नहीं थे, उनके खोने का सवाल भी क्या है! मरते वक्त तुम पाओगे कि जो आत्मा तुम लेकर आये थे, वह तुम गंवाकर जा रहे हो। बस, एक खो जायेगा! बाकी तुमने जो गंवाया, जोड़ा, मिटाया, बनाया, उसका कोई बड़ा हिसाब नहीं है; अंतिम हिसाब में उसका कोई मूल्य नहीं। तुमने लाखों जीते हों तो भी मौत के वक्त तो वे सब छूट जायेंगे; हिसाब एक का रह जायेगा। वह एक तुम हो। और अगर तुम उस एक में ठहर गये तो तुम जीत गये। अगर तुम उस एक में आ गये, रम गये; उसके लिए शिव कह रहे है: स्व में स्थिति शक्ति है।
तुम दुर्बल हो, दीन हो, दुखी हो इसका कारण यह नहीं कि तुम्हारे पास रुपये कम है, मकान नहीं है, धन नहीं है, धन दौलत नहीं है। तुम दीन हो, दुखी हो; क्योंकि, तुम स्वयं में नहीं हो। स्वयं में होना ऊर्जा का स्रोत है।वहां ठहरते ही व्यक्ति महाऊर्जा से भर जाता है।
ओशो
शिव सूत्र

Thursday, March 30, 2017

#बलिप्रथा_तटस्थ_समीक्षा
शाकाहारी हिंदुओं की एक बड़ी समस्या है खून देखकर उल्टी आने लगती है,सर चकराने लगता है और हाथ पाँव ढीले पड़ जाते हैं।
अब जरा इतिहास में एक कथित कुरीति को खंगालते हैं।
#बलिप्रथा...।
अब कई महापुरुष मुझसे असहमत होंगे, होते रहें।आपका अधिकार है।
बलिप्रथा में एक आध्यात्मिक पहलू एक तंत्र साधक ने कई बरस पहले बताया था कि उसके पहले पशु का एक गुप्त अनुष्ठान द्वारा संस्कार होता है।फिर उसे देवता को अर्पण किया जाता है।इसके परिणाम स्वरूप उस पशु को अगला जन्म मानव का प्राप्त होता है।यदि ये सत्य है तो बलिप्रथा एक आध्यात्मिक उपचार हुई, आत्मा का।
अब इसका सामाजिक या सामरिक महत्व भी समझते हैं।बलि में ब्राह्मण पूजन और तांत्रिक अनुष्ठान संपन्न करता था।उसका एक सहयोगी पशु को संस्कारित कर बलिस्थल पर लाता था।वही पशु का वध भी करता था।उसे #खट्टिक_ब्राह्मण कहते थे।आज उसे #खटीक बना कर अछूत मान लिया गया है।१००० वर्षों के अंधकार की कृपा से।
अस्तु, जब खट्टिक उपलब्ध नहीं होता तो मुख्य पुजारी की सहमति से क्षत्रिय या कोई अन्य ये कार्य करता था।
पुजारी मंत्रोच्चार करता और सही समय पर खट्टिक उसके एक इशारे पर एक घात में खड्गपात से पशु को अर्पण कर देता।रुधिर की धारा को पात्र में ले पुजारी को दिया जाता जिससे वह महाकाली को स्नान कराता।
जितने समय में रक्त स्नान और जल स्नान संपन्न होता खट्टिक माँस के खंड थाल में लाकर रख देता।पुजारी देवी को भोग अर्पण कर माँस प्रसाद रूप में राजा को भिजवा देता और राजा उसे पका कर स्वजनों के साथ ग्रहण कर लेता।अक्सर यजमान राजा ही होते थे।
पुजारी माँस नहीं खाते थे।मात्र क्रिया संपन्न कर हट जाते थे।
इसका एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता था।रक्त मांस से किसी को घबराहट नहीं होती थी।
फिर थोपी गई अहिंसा का समय आया।भैंसे और बकरे जैसे पशु जो संख्या बढ़ने पर उत्पाती हो जाते थे इससे उनकी संख्या काबू में रहती थी।किंतु जड़ अहिंसा सिद्धांत से हम ऐसे सम्मोहित हुए कि पूरा आर्यावर्त ऋषि मुनि हो गया।कुप्रथा बता कर बलि बंद करा दी।भारत के सामुहिक अवचेतन में रक्त माँस से घृणा व भय का संबंध जुड़ता चला गया।कुछ निम्न जातियों और क्षत्रिय समाज का पशु बलि से लेकिन फिर भी जुड़ाव रहा।फलतः जब मुस्लिम आक्रमण हुए तो शस्त्र उठाने का दायित्व उन्हीं पर आ गया। शाकाहारी वर्ग से बहुत कम लोग योद्धा हो पाए।और हम १००० साल विधर्मियों की क्रूरता के दंश भोगते रहे।
एक अन्य बहुत विवादित प्रथा थी '#नरबलि'।
वाममार्ग के बहुत दुर्लभ ग्रंथ "#महाकाल_संहिता" में उसका विशद वर्णन है।उसमें शत्रु देश के गुप्तचरों,हत्यारों, देशद्रोहियों व युद्धबंदियों की नरबलि का विधान है।
नक्सलियों से जिहादियों तक सब उस विधान के पात्र हैं।
इतना न हो तो हे हिंदू महात्माओं अपने बच्चों सहित महीने में एक दो बार कसाई मंडी और पोस्ट मार्टम रूम घूम आया करो।
अन्यथा....... हर बलात्कार के बाद मोमबत्ती जुलूस निकाल लेना, और हर हत्या को #संघी_गुंडे की हत्या मान लेना।
तुलसीदासजी द्वारा बाबरी मस्जिद
का वर्णन !
एक तर्क हमेशा दिया जाता है कि अगर बाबर ने राम मंदिर तोड़ा होता तो यह कैसे सम्भव होता कि महान रामभक्त और राम चरित मानस के रचइता गोस्वामी तुलसीदास इसका वर्णन पाने इस ग्रन्थ में नहीं करते।
ये बात सही है कि राम चरित मानस
में गोस्वामी जी ने मंदिर विध्वंस और बाबरी मस्जिद का कोई वर्णन नहीं किया है। हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने इसको खूब प्रचारित किया और जन मानस में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि कोई मंदिर टूटा ही नहीं था अरु यह सब मिथ्या है।
यह प्रश्न इलाहाबाद उच्च न्यायालय
के समक्ष भी था।
इलाहाबाद उच्च नयायालय में जब बहस शुरू हुयी तो श्री रामभद्राचार्य जी को Indian Evidence Act के अंतर्गत एक expert witness के तौर पर बुलाया गया और इस सवाल का उत्तर पूछा गया।
उन्होंने कहा कि यह सही है कि श्री राम चरित मानस में इस घटना का वर्णन नहीं है लेकिन तुलसीदास जी
ने इसका वर्णन अपनी अन्य कृति 'तुलसी शतक' में किया है जो कि
श्री राम चरित मानस से कम प्रचलित है।
अतः यह गलत है कि तुलसी दास जो कि बाबर के समकालीन भी थे,ने इस घटना का वर्णन नहीं किया है और जहाँ तक राम चरित मानस कि बात है उसमे तो कहीं भी मुग़ल कि भी चर्चा नहीं है इसका मतलब वे भी नहीं ऐसा तो नहीं निकाला जा सकता है।
गोस्वामी जी तुलसी शतक में लिखते हैं कि,
मंत्र उपनिषद ब्रह्माण्हू बहु पुराण इतिहास।
जवन जराए रोष भरी करी तुलसी परिहास।।
सिखा सूत्र से हीन करी, बल ते हिन्दू लोग।
भमरी भगाए देश ते, तुलसी कठिन कुयोग।।
सम्बत सर वसु बाण नभ, ग्रीष्म ऋतू अनुमानि।
तुलसी अवधहि जड़ जवन, अनरथ किये अनमानि।।
रामजनम महीन मंदिरहिं, तोरी मसीत बनाए।
जवहि बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
दल्यो मीरबाकी अवध मंदिर राम समाज।
तुलसी ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज।।
रामजनम मंदिर जहँ, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबांकी खाल नीच।।
रामायण घरी घंट जहन, श्रुति पुराण उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, कइयों कुरान अजान।।
अर्थात :
('Yavan' that is barbarians/ mohammedans, ridicule hymns, several Upanishads and treatise like Brahmans, Purnas, Itihas and also Hindu sociiety having faith in them. They exploits the Hindu society in different ways.)
(Forcible attempts are being made by Muslims to expel the followers of Hinduism from their own native place, forcibly divesting them to their shikhas and yagyopaveet and causing them to deviate from their religion. He terms it as as hard and horrowing time.)
(Describing the barbaric attack of babur, Goswami says that he indulged in gruesome genocide of the natives of that place, using swords. He says countless atrocities were committed by foolish Yavans in Awadh in and around the summer of samvat 1585, that is 1528AD.)
(Describing the attacks made by Yavans on Shri Ramjanm Bhoomi temple, Tulsidas says that after a number of Hindus have been mercilessly killed, Shri Ramjanm Bhoomi was broken to make it a mosque. Looking at ruthless killing of Hindus Tulsidas says that his heart felt aggrieved)
(Seeing the mosque constructed by Mir Baqui in Awadh, in the wake of demolition of Shri Ramjanm bhoomi Temple preceded by grisly killing of followers of Hinduism having faith in Ram and also seeing the bad plight of the temple of his favoured diety Ram, the heart of Tulsi begane to cry for Raghuraj)
(Tulsidas says that the mosque was constructed by the wicked Mir Baqui after demolishing Sri Ramjanm Bhumi temple situated in the middle of Awadh.)
(Tulsidas says that the the Quran as well as Ajaan call is heard from the holy place of shri Ramjanm Bhumi where discourses from Shrutis, Vedas, Purans, Upnishads etc used to be always heard anbd which to be constantly reververated with sweet sounds of bells.)
उपरोक्त इलाहबाद उच्च न्यायलय के निर्णय से जैसा है वैसा ही लिया हुआ है
सदा सर्वदा सुमंगल,
हर हर महादेव,
जय भवानी,
जय श्री राम
साभार

Friday, March 24, 2017

नववर्ष
विक्रमी संवत 2074 के प्रथम मास _चैत्र के शुक्ल पक्ष की_ पहली तिथि यानि प्रतिपदा। आदि काल से ही सूर्य की आभासी गति और ऋतुओं के सम्बन्ध को मनुष्य जानता समझता चला आया है। भारत के मनीषि प्राकृतिक व्यवस्था को बहुत उदात्त रूप में देखते थे और उसे एक अर्थगहन नाम दिया – ऋत। रीति-रिवाज की 'रीति' भी इसी ऋत से आ रही है।
ऋत व्यवस्था में किसी निश्चित कालावधि को उसमें निश्चित बारम्बारता में होने वाले परिवर्तनों, जलवायु और दैहिक प्रभाव लक्षणादि के आधार पर 'ऋतु' नाम दिया गया। शस्य यानि कृषि का सम्बन्ध भी ऋतु चक्र से है। भारत में छ: ऋतुयें पायी गयीं - वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत। इनमें वसंत पहली ऋतु थी।
इस ऋतु में वनस्पतियाँ पुराने वसन यानि पत्तियों रूपी वस्त्र का अंत कर नये धारण करती हैं। समूचे जीव जगत में नये रस का संचार होता है इसलिये इस समय को नवरसा भी कहा गया। घास पात तक फूलों से लद जाते हैं इसलिये वसंत कुसुमाकर भी कहलाता है। वैदिक युग में वसंत से प्रारम्भ हुआ एक वर्ष संवत्सर कहलाता था। अथर्ववेद के तीसरे मंडल की संवत्सर प्रार्थना में नववर्ष प्रारम्भ का बहुत ही अलंकारिक वर्णन है जिस पर विस्तार से चर्चा फिर कभी।

हिन्दू नव वर्ष28 मार्च 2017 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नव संवत्सर २०७४ ,

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↓↓ आप को और आप की सम्पूर्ण परिवार को
हिन्दू नव वर्ष, नवरात्र स्थापन
व रामनवमी की हार्दिक मंगल शुभ कामनाएँ↓↓
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अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान।
जनम-जनम रटि राम पद ,यह बरदानु न आन॥
मैं न अर्थ की रुचि (इच्छा) राखूं न धर्म की, न काम की और न मैं मोक्ष ही राखूं। जन्म-जन्म मैं बस राम राम रटूं (मेरा राम के चरणों में प्रेम हो) बस, यही वरदान चाहता हूँ, अन्य कुछ नहीं।
जय श्रीराम !
जय श्रीहनुमान !
नमो बुद्धाय !
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वाधा नमोस्तुते।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मेँ परमं सुखम ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
जय माता की
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प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमा‍तेति षुठ का त्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍र‍ति चाष्टम।। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ॐ श्री दुर्गा दैव्य नमः ।
!! शुभ नवरात्री !! _आपको सपरिवार वर्ष प्रतिपदा 2074 की हार्दिक मंगलकामनाएँ
!! नव वर्ष मंगलमय हो !!
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आज चैत्र शुक्ल पक्ष २८ -३- से हिन्दू नूतन बर्ष तथा वसन्तनवरात्रारम्भ: प्रारंभ ...!
विक्रमसंवत २०७४ वर्षारम्भे 'साधारण ' सम्वत्सर: ...!!
राजा मङ्गल ...! मंत्री - बृहस्पति ...!
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ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती सि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ।।
माँ दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों के भय को हर लेती हैं और स्वास्थ्य पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणकारी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुख दरिद्रता और भय को हरने वाली देवी!! आपके सिवा दूसरा कोन है ...!! जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए दयार्द्र रहता हो।
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दुर्गा सप्तशती
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https://www.facebook.com/media/set/…
सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ...!!
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शुभ मङ्गलप्रभात
:-) <3 :-)
आप सभी को नववर्ष की एवं नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाऐं
जय माँ भवानी
हर हर महादेव
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स्वस्ति वाचन
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। (Ref : ( यजुर्वेद, २५.१९)
मन्त्रार्थ
सुविस्तृत (सुविख्यात) यशवाले इन्द्र हमारा कल्याण करें, विश्व का ज्ञान रखने वाले पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें; अरिष्टों (कष्टों, विपदाओं) का निवारण करनेवाले, चक्र के समान प्रबल गरूडदेव हमारे लिए कल्याणकारी हों; वाणी के अधिष्ठाता बृहस्पति हमारे लिए कल्याणप्रद हों।
मन्त्र में प्रयुक्त पदों के अर्थ
वृद्धश्रवाः इन्द्रः न स्वस्ति दधातु = सुविस्तृत (सुविख्यात) यशवाले इन्द्र हमारा कल्याण करें; विश्ववेदाः पूषा नः स्वास्ति (दधातु) = विश्व का ज्ञान रखने वाले पूषा (सुर्य) हमारा कल्याण करें; अरिष्टनेमिः तार्क्ष्यः नः स्वास्ति (दधातु) = अरिष्टों (कष्टों, विपदाओं) का निवारण करनेवाले, चक्र के समान प्रबल (अप्रतिहतगति) गरूडदेव हमारे लिए कल्याणकारी हों; बृहस्पतिः नः स्वस्ति (दधातु) = वाणी के अधिष्ठाता बृहस्पति हमारे लिए कल्याणप्रद हों।
ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः= हे परमात्मन् हमारे त्रिविध ताप की शान्ति हो।
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अभिमंत्रित नववर्ष 2074 मेँ आप सपरिवार सदा सर्वथा स्वस्थ एवं सुखी रहेँ।
सदा निर्विकार रहते हुए क्रियावान ज्ञानी, आपका व्यक्तित्व सम्मोहक एवं वाणी मंत्रवत प्रभावी हो।
एवं आप सभी को सपरिवार चैत्रीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें
माँ भगवती की दिव्यकृपा से आप सदा ओजस्वी, तेजस्वी एवं वर्चस्वी बनेँ रहेँ।
तथा आपके योगक्षेम को साक्षात नारायण वहन करते रहेँ।
आप को एवं आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये।
नव वर्ष मंगलमय हो..
.
☼◕▬ ▬▬▬▬❋❋▬▬▬▬ ▬◕☼
..
हिन्दु नव वर्ष की हर्षित बेला पर,
खुशियां मिले अपार |
यश,कीर्ति, सम्मान मिले,
और बढे सत्कार ||
शुभ-शुभ रहे हर दिन हर पल,
शुभ-शुभ रहे विचार |
उत्साह. बढे चित चेतन में,
निर्मल रहे आचार ||
सफलतायें नित नयी मिले,
बधाई बारम्बार |
मंगलमय हो काज आपके,
सुखी रहे परिवार ||
आपको व् आपके परिजनों को
"नव वर्ष २०७४ की हार्दिक शुभकामनाएं" के साथ
जय जय श्रीसीताराम

Tuesday, March 14, 2017

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् । लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
मानस की दिव्यता
आइये रामचरित मानस की स्वयम्भूत दिव्यता को समझें। अपने चमत्कारिक प्रभाव के कारण ही मानस आज विष्व की सर्वाधिक बिकने वाली धार्मिक पुस्तक है। अरबों की संख्या में इसकी प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इसका सुन्दरकाण्ड तो इससे भी कई गुणा ज्यादा बिकता है। दिग्दिगन्त में इसकी कीर्ति छाई हुई है। किसी को गुणवान पुत्र चाहिये तो वो ‘‘एक बार भूपति मन माहीं, भै गलानि मोरें सुत नाहीं’’।1/188/1 का सम्पुट लगाकर इसका पाठ करता है। किसी को सुयोग्य जीवन साथी या सुन्दर पति चाहिये तो ‘‘देबि पूजि पद कमल तुम्हारे, सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे’’1/235/2 का सम्पुट प्रयोग करता है। किसी को निजी मकान चाहिये तो ‘‘सुंदर सदनु सुखद सब काला, तहाँ बासु लै दीन्ह भुआला’’1/126/7 का सम्पुट, किसी को उच्च विद्या चाहिये तो ‘‘गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई, अलप काल विद्या सब आई’’ 1/203/4 का सम्पुट, किसी का समय कठिनाइयों भरा है तो ‘‘दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहुहि ब्यापा’’ 7/20/1 और यदि कोई असाध्य रोग से ग्रस्त है तो ‘‘दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी’’5/26/4 को सम्पुट बना लेते हैं।
मानस जीवन में जिन विशम परिस्थितियों से रूबरू होना पड़ता है वे सब मानस में प्रसंगों के रूप में मौजूद हैं। उनसे कैसे निपटा गया यही पाठ से षिक्षा मिलती है और वहाँ के दोहे चैपाई ही सम्पुट के रूप में महामंत्र का कार्य करते हैं। मानस वक्ताओं ने सकाम भक्तों की कामना पूर्ति का आष्वासन दिया है
‘‘जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं, सुख संपति नाना बिधि पावहिं।7/14/3
श्रद्धा विष्वास रखने वालों की कामना पूर्ति होती है। इसका पता धन्यवाद ज्ञापन हेतु आयोजित अखण्ड रामायण के गूँजते सम्पुटों के स्वरों से लग जाता है। सभी मनोकामनाएँ पूरी हो गईं तो सुनाई पड़ता है
‘‘प्रभु की कृपा भयउ सबु काजू जन्म हमार सुफल भा आजू’’।5/29/4,
सन्तान प्राप्ति हुई तो
‘‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी’’।1/111/4,
मकान बन गया तो
‘‘प्रभुता तजि प्रभु कीन्ह सनेहू, भयउ पुनीत आजु यहु गेहू’’2/8/7
चमत्कृत करने वाली इस दिव्यता के पीछे एक कारण तो है मानस की पाणिनि व्याकरण के सिद्धान्त पर की गई रचना, दूजे में इसे भगवान उमा महेष्वर से मिला हुआ षुभाषीर्वाद-
सपनेहु साँचेहु मोहि पर जौं हर गौरि पसाउ।
तौ फुर होउ जो कहेउँ सब भाशा भनिति प्रभाउ।।1/15
तत्काल प्रभाव दिखाने वाले साबर मंत्र भी भगवान उमा महेष्वर के ही रचे हुये हैं ‘‘कलि बिलोकि जग हित हर गिरिजा, साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा। अनमिल आखर अरथ न जापू, प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू। और विष्व की अद्वितीय, अलौकिक पाणिनि व्याकरण का सूत्रजाल भी इन्हीं षूल पाणि का रचा हुआ है- ‘‘नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नव पंचवारम्।
अद्धर्तुकामः सनकादि सिद्धानेतद्विमर्षे षिवसूत्र जालम्।।

Monday, March 13, 2017

भारतीय राजनीति तब और अब !

News Feed

अटल बिहारी वाजपेयी -भाजपा सरकार- .(प्रथम शासनकाल)
कार्यकाल
१६ मई १९९६ – १ जून १९९६
कुछ तुलनात्मक अध्ययन कल और आज में !
जैसी परिवर्तन की बयार आज चल रही है बहुत कुछ ऐसी ही 1991से 1996 के बीच इस देश में बह रही थी ! अयोध्या में #विवादित ढांचे को #बाबरीमस्जिद कहकर गिराया जा चुका था ! पूरे देश को ऐसा लग रहा था कि बस एक बार चुनाव हो जाएँ तो देश का सिंघासन भाजपा को सौंप कर रामराज्य लाया जाए | फिर इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकेगा ! सारे देश में एक अनकहा सा आन्दोलन चल रहा था ! भाजपा जहाँ हिन्दुओ को उनके सुनहरे अतीत के लौट आने का स्वप्न दिखा रही थी वहीँ कुछ #जयचंद मुसलमानों को आगामी स्थिति के लिए भाजपा का भय दिखाकर जनसंख्या वृद्धि और इस्लामिक जिहाद के लिए उकसा रहे थे ! और इसी उठा-पटक के बीच देश में लोकतंत्र का पर्व आया ! सारे देश में उत्सव का सा माहौल था .कोई #रामराज्य के लिए उतावला था कोई #जिहाद के लिए ! जमकर वोटिंग हुई और भाजपा पूर्ण बहुमत से देश की सत्ता सम्भालने में सफल हुई ! लेकिन मात्र एक माह में ही #भितरघात का शिकार होकर सिंघासन गंवा बैठी | "बिल्ली के भागो छीका टूटा ''
सरकार की थाली बिखरी और कुछ लुप्त प्राय: से जीव जैसे एच .डी .देवगौड़ा ,चन्द्रशेखर ,इंद्रकुमार गुजराल जैसों को भी शाही थाली चखने का अवसर मिल गया
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(द्वितीय शासनकाल)
अटल बिहारी बाजपेयी -भाजपा सरकार !!
कार्यकाल
१९ मार्च १९९८ – २२ मई २००४
देश ने मध्यावधि चुनावों का सामना किया और मार्च 1998 में भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त करते हुए फिर देश की बागडोर सम्भाली .
क्योकिं देश का हिन्दू यही चाहता था !
अटल सरकार ने ११ और १३ मई १९९८ को पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से विश्व मानचित्र पर एक सुदृढ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया।
मतलब वर्तमान प्रधानमन्त्री #मोदी जी की तरह ही साहसी निर्णय लिए !
लेकिन एक गलती जो भाजपा को लम्बे वनवास की सजा के रूप में मिली ! वो थी तुष्टिकरण की नीति .
सरकारी खर्चे पर रोजा इफ़्तार शुरू किया-अटल सरकार ने लेकिन राम मंदिर में क़ानूनी अड़चन बताते रहे .
19 फ़रवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की ।अटल सरकार ने लेकिन धारा-370 में क़ानूनी अड़चन गिनाते रहे !
हज सब्सिडी बढ़ा दी स्कूलों में छात्रवृत्ति की आड़ में मुस्लिम बच्चों के लिए #वजीफे की व्यवस्था कर दी लेकिन समान नागरिक संहिता को अनदेखा करती रही !
और हिन्दू बेचारा ........अगले चुनाव के दिन गिनने लगा !
अगले चुनाव के दिन तो वो संपोले भी गिन रहे थे जिन्हें वाजपेयी सरकार हिन्दुओं के हिस्से का दूध पिला रही थी ! क्योंकि सांप दूध पीकर भी अपने विष की ही वृद्धि करता है ! जल्द ही वाजपेयी सरकार को इसका ट्रेलर मिला..
कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया।और देश के अनेक वीर योद्धा एक बच्चे की गलती से लगी इस आग में स्वाहा हो गये ! #मेरठ में आज भी जगह -जगह उन वीरों के स्मृतियों को आप देख सकते हैं |इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार एकबार फिर शून्य हो गए।
जैसे वर्तमान प्रधानमन्त्री माननीय #मोदी जी अपनी ओजस्वी भाषा से जनमानस को उद्देलित करते हैं वैसे ही माननीय #अटल जी भी करते थे !
उदाहरण देंखें ..............
"भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो।"
"क्रान्तिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रान्तिकारियों को भूल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ[9][10]।"
"मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है[11]।"
ये माननीय #अटल जी के शब्द हैं .
#मोदी जी को तो आप सुन ही रहे हैं .
और अंत में ...
मुझे तो इश्क में बर्बाद होना भाता है !
तू अपनी बात कर ,कब तक कलेजा मांगेगा .