Wednesday, April 6, 2016

बड़ा गुरुर था हम चेहरा पढना जानते हैं ,
किसी के झूठ सच में फर्क करना जानते हैं 
फिर एक दिन हमें एक गौहरे नायाब मिला .
हमें यकीं था हम हीरे को भी पहचानते हैं .
हम अपने आपको जौहरी बताते फिरते थे 
किसी शहर में हीरों की तिजारत करते थे ,
फिर एक दिन हमें मलाल हुआ .
खुला जो राज फिर ऐसा बड़ा कमाल हुआ .
वो शहर जिसमें बड़े कोहिनूर मिलते थे
वो सारे कांच थे जो खान में निकलते थे
हमें तो अब तलक यकीं नहीं आता .
कि हमने कांच को भी कोहिनूर कह डाला .
हमारे हार में वो सबसे आगे दिखता है .
हमारी हार हुई सबसे कहता फिरता है .
हमारी कशमकश हर रोज बढती जाती है
उतारें हार या फिर हार को हरा डालें

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