जीवन अनुभव

Tuesday, August 29, 2017

अश्विनी की पोस्ट से साभार !
महाकाल को निर्वाण रूप कहा गया है। बारह ज्योतिलिंग रुद्राष्टक के अंदर समाये हुए हैं। रुद्राष्टकम् यदि आप अपनी झोली में लेकर घूमते है। तब आपकी झोली में बारह ज्योतिलिंग होते है।
भगवान् शिव अष्ट मूर्ति है।रुद्राष्टक की रचना इसी के लिए हुई है।
काकभुसुण्डि जी ने आठ अपराध किये थे। इससे मुक्ति के लिए ही रुद्राष्टक है। अपराध हम सब करते है।रूद्राष्ट्क अपराधों से मुक्त होने के लिए उसकी निवृक्ति के लिए सफल साधना का साधन है।
रुद्राष्टक इंसान की राम भक्ति को दृढ़ करता है कृष्ण भक्ति को बल देता है। रुद्राक्षक का पाठ आह्लाद और ऊर्जा प्रदान करता है। रुद्राष्टक सिद्ध भी है और शुद्ध भी है। रुद्राष्टक बोले नहीं रुद्राष्टक गाएँ।
शिव भक्ति के घमण्ड में चूर काकभुशुण्डि गुरु का उपहास करने पर भगवान शंकर के शाप से अजगर बने। तब गुरु ने ही अपने शिष्य को शाप से मुक्त कराने के लिए शिव की स्तुति में रुद्राष्टक की रचना की। शिव की इस स्तुति से भक्त का मन भक्ति के भाव और आनंद में इस तरह उतर जाता है कि वह बाहरी दुनिया से मिले नकारात्मक ऊर्जा, तनाव, द्वेष, ईर्ष्या और अंह को दूर कर देता है। सरल शब्दों में यह पाठ मन की अकड़ का अंत कर झुकने के भाव पैदा करता है।
व्यावहारिक जीवन की नजर से यह कथा संदेश देती है कि जीवन में सफलता, कुशलता, धन या ज्ञान के अहं के मद में चूर होकर बड़े या छोटे किसी भी व्यक्ति का उपहास या अपमान न करें। आपके लक्ष्य प्राप्ति और सफलता में मिले किसी भी व्यक्ति के छोटे से योगदान को भी न भुलाएं और ईर्ष्या से दूर होकर पूरे बड़प्पन के साथ अपनी सफलता में शामिल करें। इससे गुरु-शिष्य ही नहीं हर रिश्ते में विश्वास और मिठास बनी रह सकती है। धार्मिक दृष्टि से यह संदेश है कि शिव किसी भी बुरे आचरण को भी सहन नहीं करते, चाहे फिर वह उनका परम भक्त ही क्यों न हो।
रुद्राष्टक एक प्रयोग शाला है जिसमे से शंकर प्रकट हो सकता है। शंकर कृपा प्रकटेगी तब गुरुदेव के प्रति विश्वास बढेगा। जीवन में जाने अनजाने में कोई अपराध हो जाये उसकी निवृक्ति के लिये पूर्ण प्रसन्ता प्राप्ति के लिए रुद्राष्टक का जन्म हुआ है। रूद्राष्ट्क आपके गुरुमंत्र को बलवता प्रदान करता है। रुद्राष्टक का पठन नहीं रुद्राष्टक का गान करना चाहिए। देवताओं का नाम जपने से पूण्य बढ़ते है। शंकर का नाम जपने से पाप समाप्त हो जाते है।
रुद्राष्टक आठ जनो ने गाया पहला भाग गुरुदेव ने गाया, दूसरा भाग पार्वती ने गाया, तीसरा भाग गणेशजी ने गाया चौथा बंध कार्तिकेय ने गाया पांचवा बंध नंदीश्वर ने गाया छठवा बंध माँ सरस्वती ने गाया। सातवा बंध भागीरथी गंगाजी ने गाया। आठवा और आखरी बंध गुरुवर ने भुसुंडि से गाने को कहा भुसुंडि रो रहा था उसके शरीर में कम्पन था उसके होठों कांप रहे थे। सभी ने कहा तेरे लिए सभी प्राथना कर रहें है तू भी गा, एक एक बंध के साथ शंकर का क्रोध निचे उतर रहा था। सबने अपने हाथ बुद्धपुरुष गुरुवर के हाथों को स्पर्श किया बुद्ध पुरुष ने अपना हाथ भुसुंडि के सर पर रखा उसके होठों को स्पर्श किया तब यह आखरी बंध उसके मुख से निकला। न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।
रुद्राष्टक का गान करते करते आठों रो रहे थे और आखरी में आठों ने एक साथ गाया। रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति। . . . बापू
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Sunday, August 27, 2017

*प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह*
*प्रात: कर-दर्शनम्*
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
*पृथ्वी क्षमा प्रार्थना*
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
*त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण*
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
*स्नान मन्त्र*
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
*सूर्यनमस्कार*
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
*संध्या दीप दर्शन*
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
*गणपति स्तोत्र*
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
*आदिशक्ति वंदना*
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
*शिव स्तुति*
कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥
*विष्णु स्तुति*
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
*श्री कृष्ण स्तुति*
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
*श्रीराम वंदना*
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
*श्रीरामाष्टक*
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
*एक श्लोकी रामायण*
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
*सरस्वती वंदना*
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥
*हनुमान वंदना*
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
*स्वस्ति-वाचन*
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
*शांति पाठ*
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
*॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*
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Friday, August 25, 2017

बुद्ध हुए और महावीर हुए और गोरख हुए नानक हुए और कबीर हुए—इतनी रोशनियां जली फिर भी संसार में अंधेरा क्यों है?
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आप सब की कृपा से! रोशनी जलती रहने दो तब न! अब बुद्ध हुए कुछ पहरा तो देते न रहे; जली रोशनी और गये। वे जा भी नहीं पाते कि हजारों रोशनी को फूंकने को तैयार बैठे हैं।
लोग रोशनी के दुश्मन हैं। लोग दीयों के पुजारी हैं, रोशनियों के दुश्मन हैं। रोशनी को बुझा देते हैं, दीये की पूजा करते हैं! जिंदगी को मेट देते हैं, पत्थरों की पूजा करते हैं! पत्थरों की पूजा चल रही है! बुद्ध की कितनी मूर्तियां बनीं, इतनी किसी और की नहीं बनीं। मूर्तियों की पूजा चल रही है। बुद्ध ने जो कहा था उससे किसको लेना—देना है, उससे किसको प्रयोजन है त्र: वह तो झंझट की बात है। उस पर चलना तो कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलना है। उस पर चलना तो जीवन को बदलना होगा। पत्थर की पूजा करने में क्या लेना—देना है, सस्ता काम है।
तुम पूछते हो कि इतनी रोशनियां जली, फिर भी संसार में अंधेरा क्यों है? रोशनियों को तुम बचने ही नहीं देते। कभी—कभी तो ऐसा है कि रोशनी खुद भी नहीं बुझ पाती और तुम बुझा देते हो। तुमने जीसस की रोशनी जिंदा—जिंदा में बुझा दी। तुमने सुकरात की रोशनी जिंदा—जिंदा में बुझा दी। तुमने मैसूर की रोशनी जिंदा—जिंदा में बुझा दी। बुद्ध और महावीर के साथ तो तुमने थोड़ी कृपा भी की। पत्थर इत्यादि फेंके, गाली—गलौज भी दी, अपमान भी किया। तुम इस तरह के कामों में बड़े कुशल हो, बड़े निष्णात!
महावीर नग्न थे तो तुम नाराज हुए, अब नग्नता में कुछ नाराजगी की बात न थी। नग्न ही तो आते हैं हम संसार में और नग्न ही हमें जाना है। वस्त्र तो हमने बीच में ओढ़ लिये हैं, बीच का धोखा है। लेकिन हम धोखों को सत्य मान लेते हैं।
कल मैं पढ़ रहा था—बंबई की किसी होटल में, नयी बनती होटल में, किसी ने एक जैन तीर्थंकर की प्रतिमा सामने खड़ी कर दी है—बीस फीट ऊंची! अब जैन प्रतिमा, नग्न तीर्थंकर की प्रतिमा.. बड़ी सनसनी फैल गयी है। जो जैन नहीं हैं वे नाराज हैं कि नंग— धड़ंग आदमी को यहां क्यों खड़ा किया? जो जैन हैं वे भी नाराज हैं, कि होटल और हमारे भगवान! बात यहां तक बढ़ गयी कि कुछ भक्तगण उनको चड्डी पहना आये।
क्या पागल हो तुम!.. चड्डी! तुम्हें कुछ और न सूझा? वैसे दिन भी चड्डीवालों के चल रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ—चड्डी दल! गुजराती में तो जैसे राजकरण, ऐसे अब उन्होंने नाम रख लिया है चड्डी—करण।
चड्डी, महावीर को चड्डी पहनाओगे! तुम्हें शर्म भी न आयी! फिर किन्हीं को गुस्सा आ गया कि हमारे भगवान को चड्डी! उन्होंने चड्डी फाडु दी। अब विदेशी पर्यटक हैं, उनको तो कुछ पता नहीं कि कौन तीर्थंकर, क्या? वे कहते हैं; 'मिस्टर तीर्थंकर!', 'मिस्टर तीर्थंकर नंगे क्यों खड़े हैं?' और उनको सारा रस उनकी नग्नता में है। वे फोटो पर फोटो उतार रहे हैं।
अब यह बात बेचैनी की है, क्योंकि इससे भारत की प्रतिमा का पश्चिम में बहुत खंडन होगा। तो कोई और ज्ञानी जाकर मूर्ति की जननेंद्रिय पर मिट्टी थोप आये! अब और भद्दी लगती है। मिट्टी थूपी संगमरमर की प्रतिमा पर... मामला क्या है? अब किन्हीं समझदारों ने कुछ रास्ता निकाला, उन्होंने एक बड़ा तख्ता लगा दिया है, जिसमें कि सिर्फ ऊपर की प्रतिमा दिखाई पड़ती है। मगर लोग इतनी आसानी से थोड़े ही छोड़ते हैं। जब से तख्ता लगा है, लोगों की उत्सुकता बढ़ गयी कि तख्ते के पीछे क्या है? तो लोग तख्ते के पीछे जा—जाकर फोटो ले रहे हैं। अब ऊपर की प्रतिमा का फोटो कोई लेता ही नहीं।
महावीर नग्न थे तो तुमने पत्थर मारे, बुद्ध को तुमने गांव—गाव से खदेड़ा—और तुम पूछते हो कि दुनिया में रोशनी कम क्यों है? तुम रोशनी के दुश्मन हो! जिसने भी रोशनी इस दुनिया में लाने की कोशिश की, तुम उससे नाराज हुए। तुम उसे सदियों तक क्षमा नहीं कर पाते। क्यों? कारण है। जो भी रोशनी लाता है उससे तुम्हारी जिंदगी का अंधेरा साफ होता है। और कोई यह मानने को राजी नहीं कि मैं अंधेरे में जी रहा हूं। जो आदमी आंखवाला है, वह अंधे को नाराज कर देता है, क्योंकि कोई अंधा यह मानने को राजी नहीं कि मैं अंधा हूं। जो पक्षी उड़ नहीं सकते, वे अगर उड़नेवाले पक्षी के पंख तोड़ दें, तो कुछ आश्चर्य है? क्योंकि उड़नेवाला पक्षी उनके अहंकार को चोट पहुंचाता है।
कफस में गुफ्तगू यह सुनकर दिल का खून होता है
न छेड़ो बाजुओं के तजकिरे, परवाज की बातें।
जो नहीं उड़ सकते, वे कहते हैं : हमारे दिल का खून न करो। बाजुओं की बातें मत करो, परवाज की बातें मत करो, उड़ने की बातें मत करो; क्योंकि इससे हमें बेचैनी होती है। तुम उड़ने की बातें करते हो, हमें हमारी नपुंसकता का बोध होता है। और ये सारे लोग परवाज की बातें करते हैं। ये कहते हैं कि परमात्मा हुआ जा सकता है। और तुम तो आदमी होना मुश्किल पा रहे हो—और ये कहते हैं परमात्मा हुआ जा सकता है। और ये कहते हैं कि तुम भी परमात्मा हो सकते हो। ये तुम्हें इतनी विराट ऊंचाई का स्मरण दिलाते हैं कि तुम चक्कर खाने लगते हो। तुम कहते हो : ये बातें ही बंद करो। हम भले हैं, जमीन पर सरकते, घसिटते, हम भले हैं। हम अपने जैसे सरकते—घसिटते लोगों के साथ भले हैं। तुम हमारे बीच में न आओ। तुम हमारी नींद न तोड़ो। हम मधुर सपने ले रहे हैं, तुम हमें ज्यादा न पुकारों।
चिराग तो जल गये हैं, यह बुझ न जायें कहीं
हवाएं तुंद हैं, हर लौ में थर— थराहट है
यह ली तो क्या है, लरजता है मेरा दिल ३ दोस्त!
कि लरजा—खेज फजाओं की सनसनाहट है
चिराग जल तो गये हैं, नजर न लग जाये
नजर भी उनकी कि जिनके यहां अंधेरा है
निगाहे—बद से बचाना है इन चिरागों को
अभी है पिछला पहर दूर अभी सवेरा है
चिराग जल तो गये हैं, मगर शरीर इतफाल
उलट न दें कहीं जलते हुए चिरागों को —
सलामती जो है मंजूर इन चिरागों की
करो दुरुस्त इन इतफाल के दिमागों को
चिराग जल तो गये, हा चिराग जल तो गये
मजा तो तब है अंधेरा न हो चिराग तले
चिराग बाम पे हों, फर्शो— आस्मां पे चिराग
बुलंदी—पस्त में सब कह उठें 'चिराग जले'
चिराग जल तो गये हैं, यह बुझ न जायें कहीं!
जलते रहे हैं, बुझते रहे हैं। जलाने वाले बहुत कम, बुझाने वाले बहुत ज्यादा। अंधेरे में तुमने बहुत—से स्वार्थ जोड़ रखे हैं। अंधेरे में तुम्हारा न्यस्त स्वार्थ है।
अब जैसे चोरों की बस्ती हो और वहां कोई चिराग जलाये, तो चोर बुझा न देंगे? चोर तो जी ही सकते हैं अंधेरे में। चोरों को चांदनी रात बुरी लगती है, अमावस की रात बड़ी प्यारी लगती है। उनका स्वार्थ है, न्यस्त स्वार्थ है।
चिराग जल तो गये हैं, यह बुझ न जायें कहीं
हवाएं तुंद हैं, हर लौ में थरथराहट है
यह ली तो क्या है, लरजता है मेरा दिल ऐं दोस्त!
कि लरजा खेज फजाओं की सनसनाहट है
चारों तरफ कंपकंपा देने वाली आंधिया हैं! चारों तरफ हवाओं का जोर है! चिराग जल तो गये हैं... कभी कोई बुद्ध, कभी कोई बहाऊद्दीन, कभी कोई महावीर, कभी कोई मुहम्मद, कभी कोई कबीर, कभी कोई गोरख.. चिराग जल तो गये हैं, मगर बडी तूफानी हवाएं हैं जो बुझा देने को आतुर हैं! और वे हवाएं तुम्हारी हैं, वे तुम हो! तुमने बुझाए हैं चिराग! और अब तुम पूछते हो कि इतनी रोशनियां जली, फिर संसार में अंधेरा क्यों है?
आपकी कृपा, आपका अनुग्रह! हा, जब चिराग बुझ जाता है, और बुझा हुआ दीया रह जाता है, तो तुम बड़े मंदिर बनाते हो, तुम बड़ी पूजा करते हो! फिर तुम्हारी स्तुतियां सुनने जैसी हैं! तुम मुर्दे की पूजा करने में कुशल हो, क्योंकि तुम मुर्दे हो! मुर्दों से तुम्हारी दोस्ती बन जाती है, जिंदों से तुम्हारी दोस्ती दुट जाती है। जीसस, जिंदा तो मारो। हां, मर जायें तो फिर पूजो। आज एक तिहाई दुनिया जीसस को मानती है। और जिस दिन जीसस को सूली लगी थी उस दिन तुम्हें पता है, तीन आदमी भी स्वीकार करने को राजी नहीं थे कि हम जीसस को मानते हैं! और जब जीसस को गोलगोथा की पहाड़ी पर, उनके कंधे पर वज्रनी सूली को लेकर चढ़ाया गया, तो वे तीन बार रास्ते में गिरे। लेकिन एक भी आदमी ने यह न कहा कि लाओ मैं साथ दे दूं कि चलो मैं तुम्हारी सूली ढो दूं। कौन हिम्मत करे!
जब जीसस को सूली लगी... और उन दिनों जैसी सूली लगती थी जेरुसलम में, आदमी एकदम नही मर जाता था, छह घंटे, आठ घंटे, दस घंटे, बारह घंटे, कभी—कभी चौबीस घंटे लग जाते थे मरने में, क्योंकि सूली का ढंग बड़ा बेहूदा था। हाथ—पैर में खीले ठोंक देते थे, लटका देते थे आदमी को। अब हाथ—पैर से खून बहेगा, बहेगा, बहेगा... घंटों लगेंगे। भरी दोपहरी सूली को ढो कर लाना, पहाड़ी रन ' चढ़ना। जीसस प्यासे हैं। उनके हाथ में खीले ठोंक दिये गये हैं। वे कहते हैं कि मुझे प्यास लगी है, कोई पानी दे दो। मगर उन एक लाख इकट्ठे लोगों में, किसी एक आदमी ने हिम्मत न की कि कह देता कि l।। मैं पानी ले आऊं तुम्हारे लिए। मरते जीसस को तुम पानी न दे सके! लोगों ने पत्थर फेंके, सड़े छिलके फेंके। गालियां दीं, सब तरह के अपमान किये। मरते जीसस को तुमने शांति से भी न मरने दिया। मरते जीसस को भाले चुभा—चुभा कर लोगों ने पूछा कि क्या हुआ चमत्कारों का? क्या हुआ तुम्हारे परमात्मा का? तुम तो कहते थे कि तुम ईश्वर के बेटे हो, अब कहां है तुम्हारा पिता? आये और प्रमाण दे!
यह तो तुमने जीसस के साथ व्यवहार किया। और फिर.. तुमने कितने चर्च बनाये जीसस के लिए! इतने तुमने किसी के लिए नहीं बनाये। और कितने पुजारी हैं आज! बारह लाख तो सिर्फ पादरी—पुजारी है दुनिया में। फिर प्रोटेस्टेंट अलग हैं, और— और दूसरे चर्च अलग हैं। दुनिया का सबसे बड़ा धर्म बन गया है ईसाइयत! कारण क्या हुआ 2: जिंदा को तो तुम स्वीकार न कर सके, मुर्दा का सम्मान कर रहे हो! शायद इसीलिए। जिंदा का तुमने इतना अपमान किया कि मनुष्य—जाति के प्राण अपराध— भाव से भर गये। अब अपराध— भाव को किसी तरह पोंछने के लिए तुम स्तुति कर रहे हो, पूजा कर रहे हो, शोरगुल मचा रहे हो; मगर अपराध— भाव मिटता नहीं।
चिराग जल तो गये हैं, नजर न लग जाये
नजर भी उनकी कि जिनके यहां अंधेरा है।
जिनके यहां अंधेरा है वे नाराज होते हैं रोशनी देखकर। तुमने कभी यह खयाल किया, कि तुम अपनी गरीबी से उतने परेशान नहीं होते जितना पड़ोसी की अमीरी से परेशान होते हो। गरीबी से तो बहुत कम लोग परेशान हैं, अमीरी से परेशान हो जाते हैं। तुम्हें खयाल ही नहीं था कि तुम्हारे पास कार नहीं है। तुम परेशान ही नहीं थे। फिर पड़ोसी एक कार ले आया। बस, अब परेशानी शुरू हुई। अब तुम गरीब हुए। अब तक तुम गरीब न थे, अब तक सब ठीक चल रहा था। अब पड़ोसी कार ले आया, अब गरीबी शुरू हुई। अब तुम्हें बेचैनी हुई। अब कार तुम्हारे पास भी होनी चाहिए।
दुनिया में इतनी गरीबी नहीं है, जितने लोग परेशान हैं। और परेशान गरीबी से तो कोई भी नहीं है। इसलिए रूस में परेशानी कम है; उसका कारण है कि सभी समान रूप से गरीब हैं! अमरीका का गरीब—से—गरीब आदमी रूस के अमीर—से—अमीर आदमी से आठ गुना ज्यादा अमीर है। लेकिन अमरीका में बडी परेशानी है, रूस में परेशानी नहीं है। तो निश्चित ही बात साफ है कि गरीबी से कोई परेशानी नहीं होती, परेशानी अमीरी से होती है। तुलना पैदा हो जाती है। तुम्हारे पास है और मेरे पास नहीं, इससे बेचैनी, इससे काटा चुभता है।
इस देश में भी यही होगा। इस देश में थोड़े—से अमीर हैं; उनको बांटा जा सकता है। जिस दिन वे बंट जायेंगे, लोग बड़े प्रसन्न हो जायेंगे। ऐसा नहीं है कि लोग अमीर हो जाएंगे। उनके बंटने से कुछ नहीं होने वाला है। उनका बंटना ऐसे है जैसे कि कोई जाकर चम्मच— भर शक्कर और सागर में डाल दे! उनके बंटने से कुछ नहीं होने वाला है। वे बंट भी जाएंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। तुम्हारी जिंदगी की मिठास न बढ़ेगी, लेकिन तुम्हारी खटास कम हो जायेगी। अगर सभी गरीब हैं तो फिर कोई अड़चन न रही। फिर तुम्हारे गरीब होने में कोई पीड़ा न रही, तुम्हारे अहंकार को चोट न रही।
यह बड़ी अजीब दुनिया है! यहां लोग अपनी गरीबी से परेशान नहीं हैं, दूसरे की अमीरी से परेशान हो जाते हैं। और जो सामान्य अमीरी—गरीबी के तल पर होता है, वह और भी बड़े पैमाने पर आध्यात्मिक तल पर होता है। तुम्हें अपने आध्यात्मिक अंधेपन की कोई पीड़ा नहीं है, लेकिन बुद्ध को देखकर तुम नाराज हो जाते हो—यह आंखवाला आदमी है।
चिराग जल तो गये हैं, नजर न लग जाये
नजर भी उनकी कि जिनके यहां अंधेरा है
निगाहे—बद से बचाना है इन चिरागों को
अभी है पिछला पहर, दूर अभी सवेरा है
चिराग तो जलते रहे, लेकिन सवेरा बहुत दूर है। सूरज अभी तक नहीं निकला है। बुद्ध जले, महावीर जले, कृष्ण, क्राइस्ट... ये चिराग हैं। सवेरा अभी नहीं हुआ। सवेरा कब होगा? सवेरा तब होगा, जब सारी मनुष्यता में एक धार्मिक प्रकाश फैल जाये। सवेरा तब होगा जब सभी के चेहरों पर ध्यान की आभा होगी। वह तो अभी बड़ी दूर है बात। और जो उसे करीब ला सकते थे, तुम उन्हें बुझा देते हो; तुम उनसे नाराज हो जाते हो; तुम उनके दुश्मन हो जाते हो।
चिराग जल तो गये हैं, मगर शरीर इतफाल
उलट न दें कहीं जलते हुए चिरागों को
शरारती लोगों से जरा सावधान रहना!
चिराग जल तो गये हैं, मगर शरीर इतफाल
बहुत शरारती लोग हैं दुनिया में; वे चिरागों का जलना पसंद नहीं करते। वे तत्‍क्षण उन चिरागों को उलट देने को तैयार हो जाते हैं।
बुद्ध पर पागल हाथी छोड़ा गया। पागल हाथी भी इतना पागल नहीं था जितने पागल आदमी हैं। क्योंकि कहानी यह है कि पागल हाथी भी बुद्ध के पास आकर रुक गया। ऐसा हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन बात मुझे जंचती है। कोई हाथी इतना पागल नहीं होता जितने आदमी पागल होते हैं! पागल हाथी को भी लगा होगा कि बेचारा सीधा—सादा आदमी है, इस पर हमला क्यों करना? पागल रहा होगा, मगर इतनी बुद्धि उसमें भी अभी शेष थी कि वह आकर रुक गया। लेकिन जिसने छोड़ा था पागल हाथी—देवदत्त—वह बुद्ध का चचेरा भाई था। चचेरा भाई! साथ—साथ बड़े हुए थे। साथ—साथ पढ़े थे। एक ही उम्र के थे। एक—सी प्रतिभा के थे। और बचपन से ही उनमें एक कशमकश थी, एक प्रतियोगिता थी। फिर जब बुद्ध बुद्धत्व को उपलब्ध हो गये तो देवदत्त को बड़ी बेचैनी होने लगी कि वह पीछे छूट गया। उसे भी बुद्धत्व सिद्ध करके दिखाना है। अब बुद्धत्व कोई ऐसी चीज तो है नहीं कि तुम सिद्ध करके दिखा दोगे। तो वह झूठा ही अपने को बुद्ध घोषित करने लगा। लेकिन झूठा बुद्ध सच्चे बुद्ध के सामने फीका लगता। तो फिर एक उपाय था कि सच्चे बुद्ध को खत्म करो। तो पागल हाथी छुड़वा दिया।
यह भी जानकर हैरानी होती है कि अपना ही भाई, चचेरा भाई, पागल हाथी छुडवायेगा! ऐसा अक्सर हुआ है। जो निकटतम हैं, वे ही सर्वाधिक नाराज हो जाते हैं, क्योंकि उनके ही अहंकार को सबसे ज्यादा चोट पहुंचती है।
जीसस ने कहा है :
पैगंबर का अपने ही गांव में सम्मान नहीं होता। क्योंकि गांव के लोग निकट होते हैं। वे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं कि एक छोकरा हमारे ही बीच से उठा। यहीं हमने उसे बड़े होते देखा, इन्हीं गलियों में खेलते देखा—और वह पैगंबर हो गया! तो हम सब दो कौड़ी के! नहीं, यह बर्दाश्त नहीं हो सकता।
जीसस अपने गांव में एक ही बार गये ज्ञान को उपलब्ध होने के बाद; दोबारा जाने की नौबत ही गांव के लोगों ने न दी! गांव के लोगों ने जीसस पर इतनी नाराजगी जाहिर की कि सारा गांव उनके पीछे पड़ गया। उन्हें पहाड़ पर ले जा कर उनको पहाड़ से गिरा देने की कोशिश की, मार डालने की कोशिश की। क्या नाराजगी थी जीसस जैसे प्यारे आदमी से? इसका प्यारा होना ही नाराजगी का कारण है। शरारती लोग हैं, दुनिया शरारतियो से भरी है।
चिराग जल तो गये हैं, मगर शरीर इतफाल
उलट न दें कहीं जलते हुए चिरागों को
इसलिए सावधानी रखनी होती है। जो जानते हैं, जो पहचानते हैं, उन्हें बड़ी सावधानी रखनी होती है, कि जब कोई चिराग जले, तो उसे अपने आचल में छिपा लें—कि उसकी रोशनी काम आ जाये लोगों के, कि उस चिराग से कुछ और बुझे चिराग जल जायें।
सलामती जो है मंजूर, इन चिरागों की
करो दुरुस्त इन इतफाल के दिमागों को
अगर चाहते हो कि दुनिया में चिराग जलते रहें, तो शरारती लोगों के दिमाग को जरा ठीक करो। मगर शरारतें नये—नये ढंग लेती जाती हैं, शरारतें नये—नये रंग लेती जाती हैं। और शरारतें बहुत तर्कपूर्ण हैं। शरारतें शास्त्रों का उल्लेख करती हैं, शरारतें शास्त्रों में आधार खोज लेती हैं।
चिराग जल तो गये, ही चिराग जल तो गये!
मजा तो तब है अंधेरा न हो चिराग तले
और फिर एक और बड़ी अड़चन है, अगर शरारतियो से चिराग बच जायें, आधियों और तूफानों से चिराग बच जायें, लोगों की नजरों से चिराग बच जायें, लोगों की बदनजरों से चिराग बच जायें—तों फिर एक और बड़ा खतरा है, कि हर चिराग के तले ही अंधेरा इकट्ठा हो जाता है। तथाकथित शिष्य इकट्ठे हो जाते हैं, जिनमें शिष्यत्व की कोई क्षमता और बोध नहीं होता। अगर उनमें शिष्यत्व की क्षमता और बोध हो, तब तो चिराग के नीचे भी रोशनी हो जाये। क्योंकि चिराग के नीचे और चिराग हो जायें!
लेकिन अक्सर यह हो जाता है कि जब भी कोई सदगुरु पैदा होता है, तो उसके विदा होते ही उसकी ही छाया में राजनीतिज्ञों के अड्डे जम जाते हैं, शरारतियो के अड्डे जम जाते हैं। वहीं आपाधापी शुरू हो जाती है कि कौन प्रथम हो?
अब यह तुम जानकर हैरान होओगे कि शंकराचार्यों के मुकदमे अदालतों में चलते हैं, तय करने के लिए कि कौन असली शंकराचार्य है! अदालत तय करेगी कि कौन असली शंकराचार्य है! एक सम्मेलन में एक ऐसे शंकराचार्य से मेरा मिलना हुआ, जिनके ऊपर इलाहाबाद के हाईकोर्ट में मुकदमा चलता है। दो शंकराचार्य हैं, दोनों घोषणा करते हैं कि हम असली हैं। एक ही पीठ पर दोनों का कब्जा है। उन्होंने मुझसे पूछा कि आपका इस संबंध में क्या मंतव्य है?
मैंने कहा कि मेरा एक मंतव्य है कि तुम दोनों नकली, इतना तय है। यह भी कोई बात है कि अदालत से तुम मुकदमे का फैसला लेने चले हो! तो तुम सोचते हो कि अदालत का जो मजिस्ट्रेट है, हजार—पांच सौ रुपये तनखाह पाने वाला, वह पहचान सकेगा कि असली शंकराचार्य कौन है? वह तो बेचारा सिर्फ अदालती ढंग से देख रहा है। वह तो इसकी जांच—पड़ताल करवा रहा है कि इसके पहले जो शंकराचार्य था, उसने जो वसीयत लिखी है वह असली है कि नकली है? किसके नाम लिखी...? दोनों के पास वसीयत है। जहां तक संभावना यह है कि दोनों के नाम लिखी हो। पहले एक के नाम लिखी हो, फिर मरते वक्त आधी मूर्च्छा में, बेहोशी में, दूसरे ने भी दस्तखत करवा लिए हों।
तो मैंने कहा कि तुम दोनों तो शंकराचार्य नहीं हो, इससे यह भी तय होता है कि तुम्हारा गुरु भी शंकराचार्य नहीं था। चिराग के तले अंधेरा इकट्ठा हो जाता है।
चिराग जल तो गये, ही चिराग जल तो गये!
मजा तो तब है अंधेरा न हो चिराग तले
हर सदगुरु के पीछे लोग इकट्ठे हो जाते हैं, जो राजनीति चलाने लगते हैं। उनसे सावधान होना जरूरी है। नहीं तो फिर पोप पैदा होते हैं, और शंकराचार्यों के मठ खड़े होते हैं, और सब उपद्रव शुरू हो जाता है।
चिराग बाम पे हों, फर्शो — आस्मां पे चिराग!
चिराग जलें ऊंचाइयों पर, शिखरों पर, आसमानों पर...।
बुलंदो—पस्त में सब कह उठें, चिराग जले।
और उत्थान हो कि पतन, लेकिन चिराग जलते रहें। लेकिन हमें सहारा देना होगा। ये चिराग कुछ ऐसे नहीं हैं कि अपने—आप जलते रहेंगे; इन्हें हमें प्राणों के द्वारा जलाना होगा। प्राणों की आहुति देंगे तो ये चिराग जलेंगे।
बुद्धों के चिराग जल सकते हैं। इस जगत की सुबह भी करीब आ सकती है। लेकिन बहुत—बहुत लोगों को अपने प्राणों का स्नेह इन चिरागों को जलाने में लगाना होगा।
अब तक यह नहीं हो पाया है। इसलिए आदमी अंधेरे में है। रात गहरी है, पर सुबह हो सकती है। और अब ऐसी घड़ी आयी है कि अगर सुबह न हो सकी तो आदमी बच न सकेगा। अब सुबह होनी ही चाहिए। अब आदमी का भाग्य ही इस बात पर निर्भर है कि सुबह होनी चाहिए। आदमी उस जगह पहुंच गया है कि जैसा है ऐसा ही अब ज्यादा देर जिंदा न रह सकेगा। गये वे दिन जब तुम तीर—कमान चला कर एक—दूसरे को मारा करते थे। अब हमारे पास अणु—अस्त्र हैं। पृथ्वी पर इतने अणु—अस्त्र हैं कि एक—एक आदमी एक—एक हजार बार मारा जा सकता है! हालांकि आदमी एक ही बार में मर जाता है। इतना आयोजन करने की कोई जरूरत नहीं है। मगर भूल—चूक क्यों करनी! राजनीतिज्ञों ने पूरा, शरारतियों ने पूरा इंतजाम कर रखा है। कितनी दफे बचोगे? एक हजार पृथ्वियां नष्ट हो सकें, इतना आयोजन है। अब अगर आदमी न बदला और सुबह न हुई तो आदमी समाप्त होगा।
इन आने वाले पच्चीस वर्ष में बड़ी निर्णायक घड़ी है। या तो आदमी नष्ट होगा और यह पृथ्वी आदमी से शून्य हो जायेगी; या फिर एक नये आदमी का जन्म होगा—एक नयी सुबह! लेकिन ये जो छोटे—छोटे चिराग जले हैं, इन्हीं से आशा बनी है।
गुलों की कसरत हो, या कमी हो, बहार फिर भी बहार है
दीये जले, बुझे, मिट गये; उनकी छाया में अंधेरा पनपा—यह सब ठीक। गुलों की कसरत हो.. फूल ज्यादा हों कि कम।
गुलों की कसरत हो, या कमी हो, बहार फिर भी बहार है
कली हो चुप या चटक रही हो, बहार फिर भी बहार है
तुम्हें शऊरे—नजर नहीं है, बहार को हेच कहने वालो!
घटा घिरी हो कि चांदनी हो, बहार फिर भी बहार है
तयूर की नग्मा—साजियां हैं, कहीं है कू—कु कहीं है पी—पी
अगर खरोशे—जगन कभी हो, बहार फिर भी बहार है
हवा में तुंदी भी हो अगर कुछ, उसे नमू का पयाम समझो
जो चंद पत्तों में बरहमी हो, बहार फिर भी बहार है
थोड़े पक्षी गीत गायें, कोई कोयल कूके एक— आध बार, कि कोई पपीहा बोले पी—पी और कौओं का बड़ा शोरगुल हो, तो भी बहार तो बहार ही है। तयूर की नग्मा—साजियां हैं... पक्षियों की गुनगुनाहट.. कहीं है कू—कु कहीं है पी—पी। अगर खरोशे—जगन कभी हो. लेकिन अगर बहुत कौओं की कांव—कांव भी हो, तो भी खयाल रखना, बहार फिर भी बहार है।
हवा में तुंदी भी हो अगर कुछ, उसे नमू का पयाम समझो
जो चंद पत्तों में बरहमी हो, बहार फिर भी बहार है।
ये छोटे—छोटे दीये जो जले और बुझ भी गये हैं—हमारे कारण। जले तो हमारे कारण नहीं, बुझे हमारे कारण हैं। तो भी इन्होंने आने वाले महावसंत की प्राथमिक सूचनाएं दी हैं। इन्होंने आने वाले सुबह की पहली खबरें दी हैं।
कदम बढ़ाके तुम चले, मगर यह इक कसर रही
कदम जरा मिले नहीं
अगर कदम मिले रहें, तो चाहे सुस्त—रौ भी हों
रसाई होगी एक दिन
फिर दूसरी कठिनाई यह हुई कि दीये तो बहुते जले, लेकिन दीये के पीछे चलनेवाले लोग कभी इकट्ठे होकर न चल सके। हिंदू अलग, मुसलमान अलग, जैन अलग, ईसाई अलग! रोशनियों को प्रेम करने वाले लोग भी इकट्ठे न हो सके! अंधेरे में लोग लड़ते रहे, ठीक था, क्षमा के योग्य हैं; रोशनियों के नाम पर लोग लड़ने लगे, यह अक्षम्य है।
कदम बढ़ाके तुम चले, मगर यह इक कसर रही
कदम जरा मिले नहीं
अगर कदम मिले रहें, तो चाहे सुस्त—रौ भी हों
रसाई होगी एक दिन
और अगर कदम मिल कर चलें तो चाहे धीमे भी चलें, तो भी एक दिन पहुंचना निश्चित है। मंजिल दूर नहीं। सुबह करीब है। ओशो मरो हे जोगी मरो।।
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