श्री गंगा
-------
हिमालय की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से कुछ अमृत धाराएँ चली आ रही हैं .सदियों से निरंतर ,अनवरत.लोग समझते हैं ये जलधाराएँ हैं जो शिवजी की जटाओं से निकल कर संसार के पाप धोने के लिए धरती पर आई है | एक परम्परा सी बन गयी है कि चाहे जितने पाप करो बस श्री गंगा जी में डुबकी लगाओ और सब साफ | धुल गये सारे पाप .अब फिर हम पवित्र हैं और नये पाप करने के लिए स्वतंत्र भी | .....
लेकिन श्री गंगा जी आपके पाप धोने वाला कोई वाशिंग पावडर नहीं है कि बस भिगोया ,धोया और हो गया ...
वो श्री गंगाजी हैं .कितने लोग गंगा को श्री गंगा जी समझ कर उनका दर्शन करते हैं ?
लोग समझते हैं वो शिवजी की जटाओं से होकर निकली हैं इसलिए ............
जिन्हें शिवजी अपने शीश पर धारण करके अमर हो गये वो अमृतधारा है श्री गंगा जी .श्री हरि के चरण कमलों को पखार कर अमृत की कुछ बूंदे जब ब्रह्मा जी के कमण्डलु से निसृत होती हैं तब स्वयं हरिप्रिया लक्ष्मी के कर कमलों की खुशबु उसमें घुल जाती है ........
और उसी अमृतधारा धारा को महादेव शिव शंकर बड़ी श्रद्धा से अपनी जटाओं में पाकर अभिभूत होते रहते हैं ...
कभी गंगा स्नान को जाएँ तो श्री गंगा जी के सम्मुख होकर जल में खड़े हो कर दर्शन करें .और सोचें ये धाराएँ श्री हरि के चरणों का स्पर्श करके हम तक आ रही हैं अर्थात ???????????/
अब हममें और श्री हरि में कोई दूरी शेष नहीं .उनके चरणों का अमृत हमें भिगो रहा है .और चरणामृत में भीग कर फिर कुछ पाना शेष नहीं रहता .....मुक्ति भी नहीं ...........
श्री हरि
-------
हिमालय की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से कुछ अमृत धाराएँ चली आ रही हैं .सदियों से निरंतर ,अनवरत.लोग समझते हैं ये जलधाराएँ हैं जो शिवजी की जटाओं से निकल कर संसार के पाप धोने के लिए धरती पर आई है | एक परम्परा सी बन गयी है कि चाहे जितने पाप करो बस श्री गंगा जी में डुबकी लगाओ और सब साफ | धुल गये सारे पाप .अब फिर हम पवित्र हैं और नये पाप करने के लिए स्वतंत्र भी | .....
लेकिन श्री गंगा जी आपके पाप धोने वाला कोई वाशिंग पावडर नहीं है कि बस भिगोया ,धोया और हो गया ...
वो श्री गंगाजी हैं .कितने लोग गंगा को श्री गंगा जी समझ कर उनका दर्शन करते हैं ?
लोग समझते हैं वो शिवजी की जटाओं से होकर निकली हैं इसलिए ............
जिन्हें शिवजी अपने शीश पर धारण करके अमर हो गये वो अमृतधारा है श्री गंगा जी .श्री हरि के चरण कमलों को पखार कर अमृत की कुछ बूंदे जब ब्रह्मा जी के कमण्डलु से निसृत होती हैं तब स्वयं हरिप्रिया लक्ष्मी के कर कमलों की खुशबु उसमें घुल जाती है ........
और उसी अमृतधारा धारा को महादेव शिव शंकर बड़ी श्रद्धा से अपनी जटाओं में पाकर अभिभूत होते रहते हैं ...
कभी गंगा स्नान को जाएँ तो श्री गंगा जी के सम्मुख होकर जल में खड़े हो कर दर्शन करें .और सोचें ये धाराएँ श्री हरि के चरणों का स्पर्श करके हम तक आ रही हैं अर्थात ???????????/
अब हममें और श्री हरि में कोई दूरी शेष नहीं .उनके चरणों का अमृत हमें भिगो रहा है .और चरणामृत में भीग कर फिर कुछ पाना शेष नहीं रहता .....मुक्ति भी नहीं ...........
श्री हरि
